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। २२२ ) चीरे जावे, तो बहुत ज्ञान का उघाड होना चाहिए ? मेढक चीरने का भाव पाप भाव है। क्या पाप भाव से ज्ञान का उघाड हो सकता है ? कभी भी नही। [5] एक जीव सुबह से शाम तक मेहनत करता है। फिर भी एक पैना नही मिलता और कोई ना करे तो भी लाखो रुपया मिलता है ऐसा देखने मे आता है।
इसलिए रुपया कमाने मे वर्तमान चतुराई कार्यकारी नहीं है, वह तो पूर्व मे पुण्य-पाप भाव किया था । उसका फल स्वरूप सयोग देखने में आता है।
प्रश्न १२-जीव की चतुराई किसमे है ?
उत्तर-वास्तव मे जीव का काय ज्ञाता-दृष्टा है। वह सयोग आदि मे कुछ फेरफार करे, ऐसा है ही नही। ऐसा जानकर अपने त्रिकाली स्वभाव का आश्रय लेकर ज्ञाता दृष्टा वनना और स्वभाव को एकाग्रता करके धर्म की वृद्धि, और पूर्णता करना ही जीव की चतुराई है।
प्रश्न १३- क्या बाह्य सयोग के अनुसार सुख-दुख व राग-द्वेष का माप है।
उत्तर-नही है (१) एक के पास सौ रुपया है । उसने एक हजार की इच्छा की और उस पर एक हजार हो गया तो वह अपने को सुखी मानता है और दूसरे के पास एक लाख रुपया है उसका एक हजार खो गया तो वह अपने को दुखी मानता है। विचारो! एक के पास ६६ गुना अधिक रुपया है वह अपने को दुखी मानता है और एक हजार वाला अपने को सुखी मानता ह । इससे सिद्ध होता है कि बाहर के सयोग अनुसार सुख-दु ख का माप नही है।
(२) एक को ६६ डिग्री वुखार है वह ज्यादा दुखो दिखाई देता है और दूसरे को १०५ डिग्री का बुखार है वह शान्त दिखाई देता है। विचारो | यदि बाह्य सयोग अनुसार सुख-दुख होता तो १०५ डिग्री वाला विशेष दुखी होना चाहिए था, सो नही है । इससे सिद्ध