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________________ ( २२० ) पन्द्रहवाँ प्रकरण वीतराग-विज्ञानता के मिले-जुले प्रश्नोत्तर प्रश्न १-~-क्या, जीव मेहनत करता है, तभी संयोग-रुपया आदि सम्बन्ध होता है? उत्तर-वर्तमान मे जीव मेहनत करता है उसके साथ सयोग आदि का सम्बन्ध नही है । “सर्व जीवो के जीवन-मरण, सुख-दुख, अपने कर्म के निमित्त से होता है।" जहाँ एक जीव अन्य जीव के इन कार्यों का कर्ता हो, वही मिथ्याध्यवसाय बन्ध का कारण है । अत सयोग आदि मे वर्तमान चतुराई कोई कार्यकारी नही है । प्रश्न २-संयोग आदि के सम्बन्ध मे समयसार कलश १६८ में क्या बताया है ? उत्तर-"अज्ञानी मनुष्यो मे ऐसी कहावत है कि इस जीव ने इस जीव को मारा, इस जीव ने इस जीव को जिलाया, इस जीव ने इस जीव को सुखी किया, इस जीव ने इस जीव को दुखी किया ऐसी कहावत है । ऐसी प्रतीति जिस जीव को होवे वह जीव मिथ्यादृष्टि है। ऐसा नि सन्देह जानियेगा, धोखा कुछ नही ऐसा जीव मिथ्यादष्टि क्यो है ? जिस जीव ने अपने विशुद्ध अथवा सक्लेशरूप परिणाम के द्वारा पहले ही बाँधा है जो आयुकर्म अथवा साताकर्म अथवा असाताकर्म उस कर्म के उदय से उस जीव को मरण अथवा जीवन अथवा दुख अथवा सुख होता है। ऐसा निश्चय है । परन्तु इसके विपरीत मैं दूसरो का अथवा दूसरे मेरा जीवन-मरण, सुखी-दुखी करते हैं आदि विपरीत मान्यता होने के कारण ऐसा जीव मिथ्यादृष्टि है।" प्रश्न ३-सयोग आदि के सम्बन्ध में समयसार कलश १६६ मे क्या लिखा है ?
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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