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________________ ( २१८ ) मे सिद्ध परात्मा हो जाते है और सादि अनन्त काल तक लोकग्रस्थित निज अक्षय अनन्त सुख मे विश्रान्ति पाने है । आप कहते हो ससार से सुख नहीं है, हम तो लोगो को सुखी देखते हैं ? उत्तर -- ससार मे दुख ही है, सुख नही है, क्योकि विचारोकोई पुण्यशाली जीव है उसके विषय मे विचारते है - ( १ ) सुबह क्यो उठता है ? उत्तर- दुखी है इसलिए । (२) टट्ठी मे क्यों जाता है ? उत्तर - दुखी है इसलिए । (३) हाथ क्यो घोता है ? उत्तर - दुखी है इसलिए । ( ४ ) स्नान क्यो करता है ? उत्तर -- दुखी है इसलिए | (५) कपडे क्यों पहनता है ? उत्तर - दुखी है इसलिए । (६) मंदिर क्यों जाता है ? उत्तर - दुखी है इसलिए । (७) मोटर मे क्यो बैठता है ? उत्तर - दुखी है इसलिए । (८) रोटी क्यों खाता है ? उत्तरदुखी है इसलिए । ( 8 ) पानी क्यों पीता है ? उत्तर- दुखी है इसलिए । (१०) दुकान पर क्यों जाता है ? उत्तर - दुखी है इसलिए | ( ११ ) रुपया क्यो इक्ट्ठा करता है ? उत्तर- दुखी है इसलिए | ( १२ ) आराम क्यों करता है ? उत्तर - दुखी है इसलिए | (१३) शास्त्र क्यों पढ़ता है । उत्तर- दुखी है इसलिए । (१४) दवाई क्यो खाता है ? उत्तर - दुखो है इमलिए । (१५) भोग क्यो करता है ? उत्तर- दुखी है इसलिए । (१६) सफर क्यों करता है ? उत्तर - दुःखी है इसलिए। इस प्रकार मिथ्यादृष्टि जीव ससार मे दुखी ही है ।] हमे धर्म की प्राप्ति क्यो नही होती है ? --- उत्तर - जिसका (आत्मा के आश्रय का ) नम्बर रखना चाहिए सबसे पहले, उसका नम्बर रखता है आखरी मे, इसलिए धर्म की प्राप्ति नही होती है । श्रीमद् रामचन्द्र ने किसी से पूछा, तुम धर्म क्यो नही करते ? उसने कहा कि समय नही मिलता है, हम क्या करे ?
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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