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________________ ( २११ ) असत्सग, (४) पूर्व का प्राय करके अनाराधकत्व, (५) बलवीर्य की होनता । प्रश्न १-- अल्पआयु से क्या तात्पर्य है ? उत्तर - हे आत्मन् शरीर का सम्बन्ध अल्प समय का देखने मे आता है । ऐवरेज आयु ३५ वर्ष की है लेकिन तुझे पीढियो की चिन्ता है । क्या यह तेरे लिए ठीक है ? सबकी चिन्ता करता है, किन्तु क्या यह तेरे साथ जावेगा ? विचार तो कर । प्रश्न २ – अनियत प्रवृत्ति से क्या तात्पर्य है ? उत्तर - हे आत्मन् । विचार-साढ़े तीन हाथ तुझे जमीन चाहिए, लेकिन बडे-बडे महलो की चिन्ता है। आधे सेर अनाज की जरूरत है, लेकिन चिन्ता लाखो की है और उसके लिए तू रात-दिन प्रवृत्ति करता है, क्या यह योग्य है ? विचार तो कर । प्रश्न ३ -- असीम बलवान असत्संग से क्या तात्पर्य है ? 1 उत्तर - हे जीव, विचार - जहाँ देखो, काम भोग बन्ध की वाते सुनने को मिलती है । आगे चलो, पुण्य करो, दान करो, उपवास करो, प्रतिमा लो, भला हो जावेगा, यह सब बाते सुनने को मिलती है | अध्यात्म की बात तो सुनने को मिलती ही नही है । हे आत्मा अनादि अनन्त किसी से तेरा कुछ भी सम्बन्ध नही है । प्रत्येक वस्तु कायम रहते हुए परिणमन करना इसका स्वभाव है । तेरा कल्याण भी तेरे से और बुरा भी तेरे से है । ऐसी बातें सुनने को मिलती ही नही, इसलिए असीम बलवान असत्सग कहा है । त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव जो सत् है उसका सग छोडकर मात्र क्षणिक भाव का तू सग करता है, इससे तेरा हित नही होगा । विचार तो कर । प्रश्न ४ – पूर्व का प्रायः करके अनाराधकपना क्या है ? उत्तर - हे आत्मा ! तूने अनादिकाल से अपनी आत्मा की अनाराधना की है। तू इस समय अनाराधकपने को मिटाकर आराधकपना प्रकट कर सकता है क्योकि पचमकाल मे जो जीव
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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