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(२१० ) (४) करी जो जो वचन की तुलना रे, जो जो शोधी ने जिन सिद्धान्त, मूल मारग साँभलो जिन नो रे ॥
यह जीव ससार मे बडी हुश्यारी से काम लेता है। जैसे-हर व्यापारी अपने माल को अच्छा ही बताता है लेकिन खरीददार विना परीक्षा किये माल को नहीं खरीदता। अरे भाई, जहाँ आत्मा का सर्वस्व अर्पण कर देना है वहाँ जो उपदेश मिलता है, वह हमारे कल्याण के लिए है या नहीं उसकी परीक्षा नहीं करते, वह वीतरागी मूल मारग सुनने के लायक नही है। इसलिए जो उपदेश मिलता है। उसकी जिन सिद्धान्त के साथ तुलना करे और जो जैन सिद्धान्त के विरुद्ध हो, वह जिन वचन नही है । ऐसा जानकर पात्र जीवो को जिन मार्ग का लाभ लेना चाहिए।
जब तक सम्यक्त्व की प्राप्ति न हो, तब तक क्या करे, तो सम्यक्त्व की प्राप्ति हो?
उत्तर-(१) जब तक सच्चा तत्त्व श्रद्धान न हो, (२) यह इसी प्रकार है-ऐसी प्रतीति सहित जीवादि तत्त्वो का स्वरूप आपको भासित न हो, (३) जैसे-द्रव्यकर्म, नोकर्म, भावकर्म मे एकत्व वृद्धि है, वैसे केवल आत्मा मे अहबुद्धि ना आवे, (४) हित-अहितरूप अपने भावो को न पहिचाने तबतक सम्यक्त्व के सन्मुख मिथ्यादृष्टि है; यह जीव थोडे ही काल मे सम्यक्त्व को प्राप्त करेगा। · क्योकि तत्त्व विचार रहित देवादि की प्रतीति करे, बहुत शास्त्रो का अभ्यास करे, व्रतादि पाले, तत्पश्चरणादि करे, उसको सम्यक्त्व होने का अधिकार नही है और तत्व विचार वाला इनके बिना भी सम्यक्त्व का अधिकारी होता है । [मोक्षमार्ग प्रकाशित पृष्ठ २६०]
सुख पाने के लिए पाँच बातो का विचार क्या है ? उत्तर-श्रीमद् रायचन्द्र जी ने पाँच बातें बतायी है -- (१) अल्पआयु, (२) अनियत प्रवृत्ति, (३) असीम बलवान
र है ऐसी
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