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चौदहवाँ प्रकरण
धर्म प्राप्ति के लिए जीव की पात्रता कब और कैसे
भगवान की वाणी सुनने की पात्रता कब कही जा सकती है ? उत्तर- (१) वृत्ति को अखण्ड करके ( २ ) पूजादि की चाहना नही करके (३) जिमे ससार का दुख लगा हो । ( ४ ) जिन वचन की परीक्षा करके उसमे लगा रहता है । वह भगवान को वाणी सुनने लायक है और उसे इसी भव में सम्यक्त्व की प्राप्ति हो जावेगी ।
(१) 'करीवृत्ति अखण्ड सन्मुख, मूल मारग साँभलो जिन नो
रे ॥
अपनी आत्मा के सन्मुख अखण्ड वृत्ति किये बिना वीतरागी मूल मारग सुनने के लिए लायक नही हो सकता है । (अ) जैसे - एक आदमी ने चादाम मे से तेल निकालना शुरू किया। जब तेल निकालने का समय आया, तो जरा चाय पो आएँ । फिर आकर तेल निकालने लगा । जब फिर तेल निकालने का समय आया, तो जरा पेशाब कर आऊँ । इस प्रकार उसे कभी भी तेल की प्राप्ति नही होगी, उसी प्रकार शास्त्र सुनते हुए अन्य सासारिक कार्य के सम्बन्ध मे विचार आवे, तो वह भगवान की वाणी सुनने लायक नही है |
(आ) एक बार श्रीमद् रायचन्द्र जो का प्रवचन बहुत आदमी सुन रहे थे । वहाँ पर एक आदमी बीडी पीकर आया बीडी पीने के -वाद गन्ध तो आती है । उसके बैठते हो दूसरे बीडी पोने वाले को बीडी की तलब लगी वह उठकर तुरन्त वाहर गया ओर वोडी पोकर वापस आकर बैठ गया। उस समय एक पैसे की तीन बीडी आती