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________________ ( २०६ ) 1 अनित्य, अशरण, वर्तमान मे दुःखरूप और भविष्य मे भी दुखरूप कहा है । शुभभाव को मोक्ष का घातक कहा है, दुष्ट-अनिष्ट भी कहा है । अज्ञानी के शुभभाव को तो वास्तव मे शुभभाव भी नही कहा जाता है, क्योकि मिथ्यात्व का महान पाप उसके साथ है । प्रश्न ४६ - एकमात्र त्रिकाली ध्रुव स्वभाव स्वाश्रित निश्चय और शुद्ध पर्याय चाहे पूर्ण हो या अपूर्ण, सब को पराश्रित व्यवहार ऐसा क्यो कहा है ? उत्तर- (१) जिस जीव को अपना कल्याण करना हो, उस जीव को सामान्य ध्रुव स्वभाव पारिणामिक जीवत्वभाव आदि नामो से कहते हैं वह मात्र निश्चय है क्योकि इसी के आश्रय से धर्म की शुरूआत वृद्धि और पूर्णता होती है । ( २ ) औपशमिक, क्षायिक धर्म का क्षायोपशमिकभाव भी व्यवहार है क्योकि त्रिकाली की अपेक्षा शुद्ध पर्याय को भी पराश्रित व्यवहार कहा है । ( ३ ) ज्ञानियों को मात्र द्रव्य स्वभाव ही सदा मुख्य रहता है पर्याय धर्म सदा गौण ही रहता है, क्योकि साधक द्रव्य स्वभाव के आश्रय से शुद्धि की वृद्धि करता हुआ, साक्षात् केवली बन जाता है । (४) निश्चयनय ( द्रव्य स्वभाव ) और व्यवहारनय (पर्याय स्वभाव ) दोनो जानने योग्य हैं किन्तु आश्रय करने योग्य एक मात्र निश्चय ही है व्यवहार कभी भी आश्रय करने योग्य नही है, उसे हेय ही समझना । स्वभाव की दृष्टि करना ही मोक्षमार्ग प्राप्त करना और मोक्ष है, क्योकि उसी के आश्रय से मोक्षमार्ग और मोक्ष प्राप्त होता है । प्रश्न ५० - द्रव्य स्वभाव के आश्रय से ही मोक्षमार्ग और मोक्ष प्राप्त होता है यह कहाँ आया है ? उत्तर - पूरा नियमसार और समयसार इसके साक्षी है । प्रश्न ५१ - पाँच बातें कौन कौनसी याद रखनी चाहिए ? उत्तर- (१) द्रव्यरूप हिसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह और द्रव्यरूप अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह तो मात्र
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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