SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २०५ ) का आश्रय लेकर उसका अभाव कर देता है । यहाँ पर शुभाशुभ भाव सब पर्यायों को स्वाश्रितों निश्चय और पर द्रव्य को पराश्रितो व्यवहार कहा है । प्रश्न ४६ - शास्त्रों में जो आत्मा के आश्रय से शुद्धभाव प्रगटा उसे निश्चय कहा है और शुद्ध के साथ शुभ अंश को व्यवहार कहा है, उससे क्या प्रयोजन और क्या लाभ है ? उत्तर - यहाँ पर मोक्षमार्ग दिखलाना है । जिसके प्रगट होने से धर्म की शुरूआत, वृद्धि होती है। मोक्षमार्ग होने पर शुद्धभाव को स्वाश्रितो निश्चय कहते है और भूमिकानुसार राग को पराश्रितों व्यवहार कहते है | यहाँ पर शुभभावों को व्यवहार कहा है। शुद्धभाव को निश्चय कहने का प्रयोजन यह है कि शुद्धभाव ही मोक्षमार्ग हैं, धर्म है। शुभभाव को व्यवहार कहने का प्रयोजन यह है कि सच्चे देव गुरु-शास्त्र का राग, अणुव्रत, महाव्रतादि का राग, दया दान-पूजा आदि का भाव मोक्षमार्ग नही है, बन्धभाव है । लाभ - ज्ञानी जानता है प्रगट करने योग्य वीतराग भाव से मेरा हित है यह प्रगट करने उपादेय है और जो राग है वह अहित रूप हैय है । प्रश्न ४७ - कुछ मनीषी कहलाने वाले दया दान-पूजा अणुव्रत महाव्रतादि से परम्परा मोक्ष की प्राप्ति बतलाते हैं क्या यह बात झूठ है ? उत्तर - बिल्कुल झूठ है क्योंकि अनादि से तीर्थकरादि, गणधर - आदियो ने शुभभावों को वध का और दुख का कारण कहा है। जो शुभभावो से मोक्षमार्ग या मोक्ष मानते है, वह सब जीव निगोद के पात्र हैं । प्रश्न ४८ - शुभभाव को बन्त्र का कारण और दुःख का कारण शास्त्रो मे कहाँ कहा है ? उत्तर - श्री समयसार गा० ७२ तथा ७४ मे शुभभावों को अपवित्र, जडस्वभावो, दुख का कारण तथा बव का कारण, अध्रुव,
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy