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________________ ( २०४ ) प्रश्न ४२-शास्त्रों से दो द्रव्यो की पर्यायो मे निमित्त-नमत्तिक सम्बन्ध बताने का क्या प्रयोजन है ? उत्तर-विश्व की रचना इस प्रकार है अर्थात वस्तु स्वभाव है कि जहाँ उपादन होता है, वहाँ निमित्त होता ही है उसको दूर करना असम्भव है। प्रश्न ४३-दो द्रव्यो की पर्यायो मे निमित्त नैमित्तिक समझने से क्या लाभ है ? उत्तर-पात्र जीव भिन्न-भिन्न चतुष्टय का भान करके भेदविज्ञानी बन के वीतरागी बनता है और अज्ञानी एकत्वबुद्धि करके और मिथ्यात्व की पुष्टि करके चारो गतियो का पात्र बनता है। प्रश्न ४४-जहां प्रत्येक द्रव्य का स्वचतुप्य भिन्न-भिन्न दिखाना हो-वहाँ क्या जानना चाहिए ? उत्तर-जहाँ प्रत्येक द्रव्य का स्वचतुष्टय भिन्न भिन्न दिखाना हो, वहाँ पर निश्चय ही प्रयुक्त होता है। स्वचतुष्टय की दृष्टि से औदयिक, औपमिक, क्षायोपशमिक और क्षायिक भावो का कर्ता निश्चय से जीव ही है। कर्मों के उदय-उपशम-क्षय आदि का कर्ता निश्चय से पुदगल ही है। यहाँ पर ध्रन स्वभाव तथा पर्याय चाहे विकारी हो या अविकारी हो दोनो निश्चय है इस अपेक्षा से रागादि जीव का कार्य है। जब दो द्रव्यो को अलग बताना हो तो जीव के विकारी भावो को भी उसकी पर्याय मे उत्पन्न होने की अपेक्षा स्वाश्रित निश्चय कहा है पर द्रव्य को पराश्रित व्यवहार कहा है । प्रश्न ४५-दो द्रव्यो के स्वचतुष्ट्य जानने से क्या प्रयोजन है और क्या लाभ है ? उत्तर-प्रत्येक वस्तु का कर्ता-कर्म अनादि से अनन्तकाल तक स्वतन्त्ररूप से दिखाना, यह प्रयोजन है। (लाभ)-अपने विभाव भावो का कर्ता जो जीव पुदगल को मानता था वह बुद्धि छूटकर अपने विभाव भावो का कर्ता मैं ह ऐसा जानकर भव्य जीव अपने स्वभाव
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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