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प्रश्न ३१-व्यवहारनय के त्याग का उपदेश क्यों दिया?
उत्तर--निश्चयनय को प्रधान कहकर व्यवहारनय के ही त्याग का उपदेश किया है क्योकि समयसार गा० २७२ मे कहा है कि निश्चयनय के आश्रय से वर्तते हैं, वे ही कर्मों से मुक्त होते है और जो एकान्त व्यवहार के ही आश्रय से वर्तते है, वे कभी कर्मो से नही छूटते ।" इसलिये व्यवहारनय है, उसका विषय भी है किन्तु उसके आश्रय से कभी धर्म की प्राप्ति, वृद्धि और पूर्णता नहीं होती बल्कि उसके आश्रय से ससार परिभ्रमण होता है इसलिए व्यवहारनय के त्याग का उपदेश दिया है।
प्रश्न ३२-व्यवहार का फल क्या है ?
उत्तर-प्राणियो को भेदरूप व्यवहार का पक्ष तो अनादिकाल से ही है उसका उपदेश भी बहुधा सर्व प्राणी परस्पर करते हैं। जिनवाणी मे व्यवहार का उपदेश शुद्धनय का हस्तावलम्बन जानकर बहुत किया है किन्तु उसका फल ससार ही है। देखो | भगवान का कहा हुआ व्यवहार नववे वेयक तक ले जाता है किन्तु उसका ससार बना रहता है-उसका दृष्टान्त द्रव्यलिगी मुनि है ।
प्रश्न ३३-निश्चय का फल क्या है ?
उत्तर-शुद्धनय का पक्ष तो कभी आया नहीं, उसका उपदेश भी विरल है वह कही-कही पाया जाता है इसलिए उपकारी श्रीगुरु ने शुद्धनय के ग्रहण का फल मोक्ष जानकर उसका उपदेश प्रधानता से दिया है। देखो-भगवान का कहा हुआ निश्चय शुभ-अशुभ दोनो से बचाकर, जीव को शुद्धभाव मे-मोक्ष मे ले जाता है उसका दृष्टान्त सम्यग्दृष्टि है कि जो नियम से मोक्ष प्राप्त करता है।
प्रश्न ३४-रचारहवी गाथा का माघ थोड़े मे क्या रहा ?
उत्तर-देखो ! ससार मे चार प्रकार का अस्तित्व है (१) पर द्रव्य का अस्तित्व-अपनी आत्मा के अलावा अनन्त आत्माएँ अनन्तानन्त पुद्गलद्रव्य धर्म, अधर्म आकाश एक-एक लोकप्रमाण असख्यात