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प्रश्न २४-चार प्रकार के अध्यात्म का व्यवहार कौन-कौनसा है ?
उत्तर-(१) उपचरित सदभूत व्यवहारनय.-"ज्ञान पर को जानता है", अथवा जान मे राग ज्ञात होने से "राग का ज्ञान है" ऐसा कहना अथवा ज्ञाता स्वभाव के भानपूर्वक ज्ञानी "विकार को भी जानता है" ऐसा कहना । (२) अनुपचरित सद्भूत व्यवहारनयःज्ञान और आत्मा इत्यादि गुण-गुणी का भेद करना । (३) उपचरित असद्भूत व्यवहारनय -साधक ऐसा जानता है कि मेरी पर्याय मे विकार होता है। उसमें जो व्यक्त राग-बुद्धिपूर्वक राग प्रगट ख्याल मे लिया जा सकता है ऐसे राग को आत्मा का कहना । (४) अनुपचरित असद्भुत व्यवहारनयः-जिस समय बुद्धिपूर्वक राग है उस समय अपने ख्याल मे न आ सके, ऐसा आबुद्धि पूर्वक राग भी है उसे जानना।
प्रश्न २५-चार प्रकार का अध्यात्म का व्यवहार कर और किसफो नागू पड़ता है ?
उत्तर-एकमात्र साधक जीवो को ही लागू पडता है और मिथ्या दृष्टि और केवली को लागू नही पडता है ।
प्रश्न २६-उपचरित सद्भुत व्यवहारनय का पृथक्-प थक् अर्थ करो ? __उत्सर-(१) पर का उपचार आता है, इसलिए उपचरित कहा है। (२) अपने में होता है, इसलिए सद्भूत कहा है। (३) भेद पडता है, इसलिए व्यवहार कहा है । (४) श्रुतज्ञान का अश है, इसलिये नय कहा है।
प्रश्न २७-अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय का पृथक्-पृथक् अर्थ करो?
उत्तर-(१) पर का उपचार नही आता है, इसलिए अनुपचरित कहा है । (२) अपना नहीं है, इसलिये असद्भूत कहा है। (३) भेद