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________________ ( १९४) व्रतादि के राग को बन्ध रूप कहना निश्चय है और भावलिगी मुनि के महाव्रतादि को मुनिपना कहना यह व्यवहार है। ६) लोटे को पीतल का कहना निश्चय है और लोटे को पानी का कहना यह व्यवहार है। (७) रोटी आटे से बनी निश्चय है और रोटी बाई ने बनायी यह व्यवहार कथन है। (८) केवलज्ञान-ज्ञानगुण मे से हुआ निश्चय है और केवलज्ञान ज्ञानावरणीय के अभाव से हुआ यह व्यवहार कथन है। (8) वीर्य का क्षायिकपना वीर्य गुण मे से हुआ निश्चय है और वीर्य का क्षायिकपना अन्तरायकर्म के क्षय से हुआ यह व्यवहार कथन है। (१०) ज्ञान का क्षयोपशम ज्ञान से हुआ यह निश्चय है और ज्ञान का क्षयोपशम ज्ञानावरणीय के क्षयोपशम से हुआ यह व्यवहार कथन है। (११) कपडे अपने से धुले यह निश्चय है और कपड़े बाई ने धोये यह व्यवहार कथन है। (१२) जीव अपनी क्रियावती शक्ति से चला यह निश्चय है और जीव धर्मद्रव्य से चला यह व्यवहार कथन है। (१३) चश्मा अपनी योग्यता से उठा यह निश्चय है और चश्मे को मैंने उठाया यह व्यवहार कथन है। (१४) अभेद आत्मा को आत्मा कहना निश्चय है और ज्ञान-दर्शन-चारित्र को आत्मा कहना व्यवहार है। (१५) श्रद्धागुण की शुद्ध पर्याय प्रगटी उसे सम्यगदर्शन कहना निश्चय है और देव-गुरु-शास्त्र के राग को सम्यग्दर्शन कहना यह व्यवहार कथन है। (१६) देशचारित्र को श्रावकपना कहना निश्चय है और १२ अणुव्रतादिक को श्रावकपना कहना यह व्यवहार कथन है। (१७) तीन चौकडी के अभावरूप शुद्धि को मुनिपना कहना निश्चय है और २८ मूलगुण के राग को मुनिपना कहना व्यवहार कथन है । (१८) राग को आत्मा का कहना निश्चय है और राग को कर्म का कहना व्यवहार कथन है। ऐसे ही सब जगह जान लेना चाहिए और व्यवहार का अर्थ ऐसा है नही, यह निमित्तादि की अपेक्षा कथन है, ऐसा ध्यान मे रखना चाहिए। प्रश्न २१-ग्यारहवीं गाथा मे किस व्यवहार को अभूतार्थ कहा
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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