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'निर्मल परिणति व्याप्य व्यापक भाव का अभाव होने से व्यवहार है । इसी प्रकार अभेद-भेद, अनुपचार- उपचार, भूतार्थ- अभूतार्थ और मुख्य गौण पर लगाना चाहिए । अखण्ड त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव के सामने सब व्यवहार है ।
प्रश्न ४- तीनो प्रकार के निश्चय व्यवहार को समझने-समझाने से क्या लाभ है ?
उत्तर - शास्त्रो मे चार अनुयोग रूप कथन है । चारो अनुयोगो मे जहाँ जैसा जिस अपेक्षा कथन किया है, वैसा जानकर अपने मे वीतरागता प्रगट करना चारो अनुयोगो का तात्पर्य है । सर्वज्ञ की वाणी का तात्पर्य एक मात्र वीतरागता ही है ।
प्रश्न ५ - विकारी पर्याय को स्वाश्रित निश्चय क्यो कहा है ? उत्तर- (१) जो जीव रागादि को पर का मानकर, स्वच्छन्द होकर निरुद्यमी होता है, उसे क्षणिक उपादान की मुख्यता से रागादि आत्मा के है ऐसा ज्ञान कराया है (२) रागादि मेरी पर्याय में मेरे अपराध से है ऐसा जानकर स्वभाव का आश्रय लेकर अभाव करे इसलिए विकारी पर्याय को स्वाश्रित निश्चय कहा है । यह अशुद्ध निश्चयनय से कहा है ।
प्रश्न ६ – निर्मल पर्याय को निश्चय क्यो कहा है
उत्तर - निर्मल पर्याये प्रकट करने योग्य है अत निश्चय कहा है । प्रश्न ७ - अखण्ड त्रिकाली ज्ञायक को निश्चय क्यो कहा है ? उत्तर - अखण्ड त्रिकाली ज्ञायक आश्रय करने योग्य है अतः निश्चय कहा है. क्योकि इसी के आश्रय से धर्म की प्राप्ति, वृद्धि, और पूर्णता होती है ?
प्रश्न ८ - ( १ ) विकारीभाव, (२) शुद्ध निर्मलदशा और ( ३ ) अखण्ड त्रिकाली, तीनो को निश्चय कहा, इससे अज्ञानी को भ्रमणा होती है ?