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________________ तेरहवां प्रकरण निश्चय-व्यवहार समझने समझाने की कुंजी प्रश्न १-निश्चय-व्यवहार किसे कहते हैं ? उत्तर-(१) स्वाश्रित निश्चय, पराश्रित व्यवहार । (२) व्याप्यव्यापक का सदभाव निश्चय, व्याप्य-व्यापक का अभाव व्यवहार। (३) अभेद सो निश्चय, भेद सो व्यवहार। (४) अनुपचार सो निश्चय, उपचार सो व्यवहार । (५) भूतार्थ सो निश्चय, अभूतार्थ सो व्यवहार (६) मुख्य सो निश्चय, गौण सो व्यवहार । इन सब परिभाषाओ का अर्थ एक ही है। प्रश्न २-स्वाश्रित निश्चय और पराश्रित व्यवहार को किस-किस प्रकार जानना चाहिए ? | उत्तर-(१) जीव का विकारी भाव स्वाश्रित होने से निश्चय है। इसकी अपेक्षा कर्म आदि पर द्रव्य पराश्रित होने से व्यवहार है। (२) निर्मल (अविकारी) परिणति स्वाश्रित होने से निश्चय है। इसकी अपेक्षा जीव का विकारीभाव, पर निमित्त की अपेक्षा रखता है। इसलिए पराश्रित होने से व्यवहार है। (३) अखण्ड त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव स्वाश्रित होने से निश्चय है। इसकी अपेक्षा निमल (अविकारी) परिणति त्रिकाली न होने से व्यवहार है। प्रश्न ३-निश्चय-व्यवहार को दूसरी तरह से समझाइये? उत्तर-(१) जीव का विकारी भाव व्याप्य-व्यापक भाव का सद्भाव होने से निश्चय है। कर्मादि परद्रव्य-व्याप्य-व्यापक भाव का अभाव होने से व्यवहार है। (२) निर्मल परिणति व्याप्य-व्यापक भाव का सदभाव होने से निश्चय है। जीव का विकारी भाव व्याप्यव्यापक भाव का अभाव होने से व्यवहार है। (३) अखण्ड त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव व्याप्य-व्यापक भाव का सदभाव होने से निश्चय है।
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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