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पना यह मूर्खता है । अज्ञानी लक्ष्मी आदि की प्राप्ति में लगा रहता है. यह अनन्त ससार का कारण है । तू स्वय को भूलकर पागल हो रहा है। एक बार अपने भगवान आत्मा को देख | तुझे तुरन्त, शान्ति की प्राप्ति हो । इसलिए हे भव्य । एक वार जिनेन्द्र भगवान की आज्ञा मानकर अपने स्वभाव का आश्रय ले तो जो भगवान ने जाना है वैसा ही तू जानेगा और ऐसा अपूर्व आनन्द प्रगट होवेगा, जिसका वर्णन नही हो सकता है।
प्रश्न ७-आत्मा त्रिकाल शुद्ध है, ऐसा तो हम जानते हैं फिर हमें शान्ति क्यो नहीं है ?
उत्तर-बिल्कुल नहीं जानते, क्योकि अपनी आत्मा का अनुभव हुए विना आत्मा त्रिकाल शुद्ध है - यह जानना तोते जैसा है। देखो! समयसार की छठी गाथा में भगवान अमृतचन्द्राचार्य ने "वही समस्त अन्य द्रव्यो के भावो से भिन्न रूप से उपासित होता हुआ शुद्ध कहलाता है।" ऐसा बताया है।
वास्तव मे अनुभव होने पर ही मैं ससार मे अकेला था और मोक्ष मैं भी अकेला ह ऐसा पता चलता है। इसलिए पात्र जीवो को ज्ञानी गुरुओ के सत्सग मे रहकर, सत्य बात का निर्णय करके, अपना आश्रय लेकर धर्म की प्राप्ति करना चाहिए ।
प्रश्न ८-ज्ञानों के (धर्मों के) उपदेश से सावधान हुआ-ऐसा आपने कहा-क्या द्रव्यलिगो मुनि के उपदेश से धर्म की प्राप्ति नहीं होती है।
उत्तर-वास्तव मे धर्म की प्राप्ति मात्र आत्मा के आश्रय से ही होती है धर्मी अधर्मी के आश्रय से कभी नही। परन्तु जैसे-किसी ने हीरे जवाहरात का कार्य सीखना है तो वह जौहरी के पास से सीखता है और काम सीख लेने पर इसकी कृपा से सीखा ऐसा उपचार से कहा जाता है। उसी प्रकार जिसे धर्म की प्राप्ति करनी हो और जिसको
हीरे जवाहरात का काम
पर इसकी कृपा से सामान और जिस