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________________ प्रश्न ३५ - हमार जावन में काइ अनुकूल या प्रतिकूल सयाग आवे तो क्या करें ? उत्तर- (१) वास्तव मे कोई सयोग अनुकूल प्रतिकूल है ही नहीं । अपनी मिय्या मान्यता ही प्रतिकूल है । ( २ ) तुम्हारे जीवन मे कैसा ही अनुकूल-प्रतिकूल सयोग हो उस समय तुम अरहत और सिद्ध जो कार्य करते हैं वहीं कार्य करो अर्थात् ज्ञाता दृष्टा वनो तो जीवन मे शान्ति आ जावेगी यही बात ५० वे कलश मे है । प्रश्न ३६ - ज्ञानी के कितने अर्थ है ? उत्तर - तीन अर्थ हैं, जहाँ जैसा हो वहाँ वैसा जानना । वैसे विशेषरूप से दूसरे नम्बर की वात शास्त्रों में आती है । (१) 'जिसमे ज्ञान हो वह ज्ञानी' इस अपेक्षा निगोद से लेकर सिद्ध शिला तक सब जीव ज्ञानी । (२) 'सम्यग्ज्ञानी सो ज्ञानी, मिथ्याज्ञानी सो अज्ञानी ।' इस अपेक्षा तीसरे गुणस्थान तक अज्ञानी और चौथे गुणस्थान से ऊपर के सब ज्ञानी हैं । (३) 'सम्पूर्ण ज्ञानी सो ज्ञानी, कम ज्ञान वाले अज्ञानी' इस अपेक्षा चार ज्ञानधारी गणधर भी अज्ञानी है ! मात्र अरहत सिद्ध ज्ञानी है । प्रश्न ३७ -- आपने ३६वें प्रश्न मे ज्ञानी के तीन प्रकार बताये हैं। क्या ये भेद किसी शास्त्र में आये हैं ? उत्तर सभी शास्त्रो मे आये है । मुख्य रूप मे श्री समयसार गाथा १७७-१७८ के भावार्थ मे तथा गाथा ३२० के भावार्थ मे यह तीन ज्ञानी के प्रकारो का वर्णन किया है। प्रश्न ३८ -- समयसार ५०वें कलश में दो बोल क्या बताये हैं ? उत्तर- (१) ज्ञानी तो अपनी ओर पर की परिणति जानता हुआ प्रवर्तता है । (२) पुद्गल अपनी और पर की परिणति न जानता हुआ प्रवतता है । प्रश्न ३६ - ५० वें कलश में दो बोलो मे क्या बात आ जाती है ? उत्तर-भेद विज्ञान की सम्पूर्ण बात आ जाती है ।
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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