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उत्तर - मौखिक उत्तर दो ।
प्रश्न ३२ - पुद्गलादि पांच वोलो पर सुखदायक - दु सदायक उतारकर समझाइये ?
उत्तर- मौखिक उत्तर दो ।
प्रश्न ३३ - पुद्गलादि पांच बोलो पर संयोगादि पांच वोल उतार फर समझाइये ?
उत्तर- मौखिक उत्तर दो ।
प्रश्न ३४ - समयसार ५०वें फलश का तार क्या बता रहा है ? उत्तर- (१) कोई हमारी निन्दा करता है या प्रशसा करता है (२) कोई गाली देता है, कोई मिठाई देता है (३) कोई गर्दन काटता है, कोई स्तुति करता है (४) घर मे माल आता है या चोरी हो जाती है ( ५ ) शरीर ठीक रहता है या भयानक बीमारी पैदा हो जाती है । इत्यादि जितने भी प्रश्न उपस्थित हो, तो भगवान अमृतचन्द्राचार्य का सिद्धान्त जानी तो अपनी और परकी परिणति को जानता हुआ प्रवर्तता है ऐसा माने तो शान्ति आ जावेगी ।
तीर्थंकर - गणधरादि एक ही बात बतलाते है क्योकि अनन्त ज्ञानियो का एकमत होता है और एक अज्ञानी के अनन्त मत होते है। तमाम ज्ञानियो का एक मत है कि सत् द्रव्य लक्षणम्' 'उत्पाद श्रव्य युक्त सत् । ' 'अनादिनिधन वस्तुएँ भिन्न-भिन्न अपनी-अपनी मर्यादा लिए परिणम हैं, कोई किसी का परिणमाया परिणमता नाही' और दूसरो को परिणमाने का भाव निगोद का कारण है। छहढाला मे कहा है कि 'पुद्गल नभ धर्म अधर्म काल, इनते न्यारी है जीव चाल ' ' रागादि प्रगटे ये दुख दैन, तिन ही को सेवत गिनत चैन' इत्यादि । तू जीव है तेरा किसी भी पर द्रव्य से कोई भी सम्बन्ध नही है । पुण्य भाव से तू जो अपना भला होना मानता है वह जहर है यह सबसे बडा मिथ्यात्व है इसलिए पुण्य भाव से भी दृष्टि उठा । अपने ज्ञाता दृष्टा स्वभाव को जान ।