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गयी, अज्ञानी द्वेप करता है। अज्ञानी मात्र इस जीव की अवस्था को लक्ष्य मे लेता है तो राग-द्वेष होता है। यदि सर्व अवस्थाओ मे 'वह का वह जीव है' ऐसा माने तो किसी के प्रति द्वीप और किसी के प्रति राग नहीं होगा, मात्र वे सब ज्ञान का ज्ञय बनेंगे । यदि भूत, भविष्य और वर्तमान तीनो अवस्थाओ मे नित्यता का विचार करे तो वदवू, प्यार और द्वष उत्पन्न नहीं होगा, बल्कि शान्ति की प्राप्ति होगी।
(२) एक राजा था। उसका एक प्रधान बडा ज्ञानो था । राजा ने एक बार प्रधान सहित सबको खाने के लिए आम त्रित किया। राजा ने सबसे पूछा-रसोई कैसी है। सबने कहा, महाराज-बहुत उत्तम स्वादिष्ट है। राजा ने प्रधान से पूछा, 'प्रधान जी, रसोई कैसी है।' प्रधान ने कहा, "जैसी होती है वैसी है।" एक बार प्रधान सहित राजा घोडे पर सवार होकर कही जा रहे थे। रास्ते मे गन्दे नाले का पानी सडने के कारण बहुत बदबू आ रही थी, निकलना भी मुश्किल था। राजा ने कहा, प्रधान जी वडी बदबू आ रही है । परन्तु प्रधान ने कुछ उत्तर नही दिया। प्रधान ने विचारा राजा बार-बार पूछता है इसे बोधपाठ देना चाहिए। कुछ दिन बाद प्रधान ने राजा को खाने के लिए निमन्त्रण दिया। प्रधान ने गन्दे नाले का वदवूदार पानी लाकर, उसमे निर्मली डालकर साफ करके उसमे केशर आदि डालकर सुगधित बना दिया और सबसे कह दिया कि राजा पानी मॉगे, कोई न देना, मै ही दूंगा। खाना खाने के बीच मे राजा ने पानी माँगा, तब प्रधान जी स्वय लाये । राजा सुगन्धित पानी को पीकर दग रह गया और राजा ने विचारा कि प्रधान इतना स्वादिष्ट भोजन और सुगधित पानी पीता है। इसलिए प्रधान ने मेरी रसोई को अच्छा नहीं बताया था। राजा ने पूछा, प्रधान जी, इतना स्वच्छ और सुगवित पानी कहां से लाए हो ? प्रधान ने जवाब दिया, महाराजा उस सडे गदे नाले का पानी जिसमे उस दिन बदबू आ रही