SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १७५ ) प्रश्न १६ - द्रव्य - गुण तो शुद्ध है पर्याय में अशुद्धि कहाँ से आई ?' उत्तर - द्रव्य-गुण तो अनादिअनन्त शुद्ध हैं उस पर लक्ष्य ना करने से पर्याय मे अशुद्धि उत्पन्न होती है और अपने द्रव्य गुणो के अभेद पिण्ड पर लक्ष्य करे तो शुद्ध पर्याय प्रगट होती है पर से या द्रव्यक्रमो से उत्पन्न नही होती है । प्रश्न १७ – “पज्जय मूढा हि पर समया" अर्थात् पर्यायमूढ पर समय है इससे क्या तात्पर्य है ? उत्तर - जब आदिनाथ भगवान ने दीक्षा ली तो मारीच ने भी ली थी । उसने भगवान का विरोध किया ऐसा जानकर अज्ञानी द्व ेष करता है । वही मारीच दसवे भव मे भयकर क्रूर शेर बना, जिसको देखकर जंगल के जीव यतेि थे । उसकी क्रूरता देखकर अज्ञानी को द्वेष होता है। शेर पर्याय में सम्यग्दर्शन हुआ तो अज्ञानी को उसके प्रति राग आता है । २४वाँ तीर्थकर होने पर पूज्य कहलाया तो अज्ञानी को शुभराग आता है । मारीच को देखकर शेर पर्याय मे द्वेष और शेर पर्याय मे सम्यग्दर्शन होने पर राग, महावीर होने पर अतिराग किया। इसलिए मिध्यादृष्टि को पर्यायदृष्टि होने से राग-द्वेष ही उत्पन्न होता है । मारीच से लेकर महावीर पर्यन्त सलगपने देखो तो मारीच द्व ेष के योग्य नही है, शेर द्वेष और राग करने योग्य नही है ऐसा जाने तो राग-द्व ेष उत्पन्न नही होगा । ज्ञानी को सदैव स्वभावदृष्टि ही होती है इसलिए राग-द्वेष उत्पन्न नही होता है । प्रश्न १८ - द्रव्यदृष्टि सो सम्यग्दृष्टि और पर्यायदृष्टि सो मिथ्या-दृष्टि का दृष्टान्त देकर समझाइये ? उत्तर- (१) एक कुत्ता है । उसको कोढ हो रहा है । उसमे बहुत बदबू आ रही है अज्ञानी उस पर द्वेष करता है । कुत्ता मर कर मन्दकषाय के कारण रानी बनी, उसको देखकर अज्ञानी राग करता है । रानी ने जवानी के नशे मे मदिरापान किया रानी मरकर नरक मे
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy