________________
( १७४ )
की सन परिणति प्रभु, अपने-अपने मे होती है, ऐसा पूजा मे भी आया है । (८) अस्तित्व - वस्तुत्व द्रव्यत्वगुण बताता है कि वस्तु धीव्य रहती हुई, अपना-अपना प्रयोजनभूत कार्य करती हुई निरन्तर बदलती रहती है । ( 2 ) भगवान उमास्वामी ने 'सत्द्रव्यलक्षणम्, उत्पाद व्यय धीव्य युक्त सत् ' यह महा सिद्धान्त वताया है ।
प्रश्न १३ - जो भगवान का बताया हुआ ऐसा वस्तु स्वरूप नहीं मानता उसे भगवान ने क्या-क्या कहा है ?
उत्तर- ( १ ) समयसार ५५वे कलग मे 'महा मोह अज्ञान अधकार है उसका सुलटना दुनिवार है ।' तथा मिथ्यादृष्टि कहा है । (२) प्रवचनसार मे " पद पद पर धोखा खाता है" ऐसा कहा है । (३) पुरुषार्थ सिद्धयुपाय मे "तस्य देशना नास्ति" कहा है।
प्रश्न १४ - जो पर्याय उत्पन्न होती है तब किसको याद रखें तो संसार का अभाव होकर मोक्ष की प्राप्ति हो ?
उत्तर - श्री प्रवचनसार का " तेहि पुणो पज्जाया" अर्थात् द्रव्य और गुणों से पर्यायें होती है पर से नही । ऐसा जाने तो ससार का अभाव होकर मोक्ष की प्राप्ति हो ।
प्रश्न १५ - ( १ ) समयसार से ज्ञान हुआ । (२) दर्शनमोहनीय के क्षय से क्षायिक सम्यक्त्व हुआ । (३) उसने गाली दी, तो गुस्सा आया । ( ४ ) जीव विकार करे, तो नया कर्म वध होता है (५) दिव्यध्वनि से ज्ञान होता है (६) ज्ञयो के जानने से ज्ञान की प्राप्ति होती है आदि कथनो मे 'तेहि पुणो पज्जाया' का सच्चा ज्ञान कव होवे ?
M
उत्तर -- जैसे - " समयसार से ज्ञान हुआ" "तेहि पुणो पज्जाया' से पता चला ज्ञान आत्मा के ज्ञान गुण से आया, समयसार से नही । ऐसा जानने से ज्ञान सुख, सम्यग्दर्शनादि परसे आता है ऐसी खोटी बुद्धि का अभाव हो तो 'तेहि णो पज्जाया' को जाना। बाकी पांच प्रश्नो के उत्तर इसी प्रश्न के अनुसार दो ।