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प्रश्न ६ - यदि द्रव्य अपने गुणो और पर्यायो को प्राप्त ना करे अर्थात दूसरो को प्राप्त करे तो क्या होगा ?
उत्तर - अनर्थ हो जावेगा, क्योकि कोई भी द्रव्य अपने गुण- पर्यायो को छोड़कर नही जाता है । परन्तु उल्टी मान्यता के कारण अभिप्राय मे अनर्थ हो जावेगा ।
प्रश्न ७ - गुण को अर्थ श्री प्रचनसार मे क्यो कहा है ?
उत्तर - गुण जो अपने आश्रय भूत द्रव्य और पर्यायो को प्राप्त होते हैं इसलिए गुण को अर्थ कहा है ।,
प्रश्न ८ - यदि 'गुण अपने आश्रयभूत द्रव्य और पर्याय को प्राप्त न हो और गुण दूसरे द्रव्यो और पर्यायो को प्राप्त हो तो क्या होगा ? उत्तर - वास्तव मे सदैव गुण अपने आश्रयभूत द्रव्य और पर्यायो को ही प्राप्त होते है अन्य को नही । परन्तु कोई ऐसा कहे कि गुण दूसरे द्रव्य और पर्यायो को प्राप्त होते है तो उसकी मान्यता मे अनर्थ हो जावेगा । वह चारो गतियो मे घूमता हुआ निगोद की सैर करेगा ।
प्रश्न - पर्याय को अर्थ श्री प्रवचनसार मे क्यो कहा है ? उत्तर - पर्याय द्रव्य को गुण को क्रम परिणाम से प्राप्त करती है इसलिये पर्याय को अर्थ कहा है ।
प्रश्न १० - यदि पर्याय द्रव्य-गुण को क्रम परिणाम से प्राप्त ना करे तो क्या होगा ?
उत्तर - वास्तव मे पर्याय द्रव्य-गुणो को क्रम परिणाम से ही प्राप्त करती है, अन्य को नही । परन्तु कोई उल्टा कहे, तो उसकी मान्यता मे अनर्थ हो जावेगा ।
प्रश्न ११ - द्रव्य-गुण-पर्याय को 'अर्थ' कहा, इससे हमको क्या लाभ हे ? उत्तर -- प्रत्येक द्रव्य अपने-अपने गुण- पर्यायो मे ही वर्तता है, वर्तता रहेगा और वर्त रहा है - ऐसा जाने-माने तो तुरन्त मोह का