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( १७१ ) ग्यारहवाँ प्रकरण प्रवचनसार ६३वी गाथा का रहस्य प्रश्न १-'अर्थ' का मतलब क्या है ?
उत्तर-(१) अर्थ अर्थात प्रयोजन । दुख का अभाव और सुख की प्राप्ति यह ही प्रत्येक जीव का प्रयोजन है और नही है। (२) प्रकृष्ट रूप से अपनी आत्मा मे जुडान करना उसका नाम प्रयोजन है।
प्रश्न २-अपनी आत्मा में प्रकृष्ट रूप से जुड़ान करने से क्या होता है ?
उत्तर-अपनी आत्मा मे प्रकृष्ट रूप से जुडान करने से अनादि काल से जो समय-समय भावमरण हो रहा था। उसका अभाव होकर सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति होकर क्रमश मोक्ष होता है ।
प्रश्न ३-अर्थ का दूसरा अर्थ क्या है ? उत्तर--श्री प्रवचनसार गा० ६३ मे लिखा है कि
है अर्थ द्रव्य स्वरूप, गुणात्मक कहा है द्रव्य को। अरू द्रव्य-गुणो से पर्यायो, पर्यय सूद पर समय है ।।६३॥ 'अत्थो खलु दव्यमओ, दवाणि गुणप्प गाणि अणि दाणि
तेहि पुणो पज्जाया, पज्जय भूडा पर समया ।६३॥ अर्थ--अर्थ द्रव्य स्वरूप है द्रव्यो को गुण रूप कहा गया है । द्रव्य और गुणो से पर्याये होती हैं पर्यायमूढ जीव पर समय है। देखो । यहाँ अर्थ को द्रव्य स्वरूप है ऐसा कहा है।
प्रश्न ४-क्या द्रव्य ही अर्थ है ?
उत्तर-श्री प्रवचनसार गा० ८७ मे द्रव्य-गुण और पर्याय तीनो को अर्थ नाम से कहा है।
प्रश्न ५-द्रव्य को अर्थ श्री प्रवचनसार में क्यो कहा है ?
उत्तर-द्रव्य अपने गुणो और पर्यायो को प्राप्त होते हैं इसलिए द्रव्य को अर्थ कहा है। ।