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( १६६ ) इससे जीव को अनादिकाल से पर मे कर्ता-भोक्ता बुद्धि का अभाव होकर धर्म की प्राप्ति होती है ।
प्रश्न ५-"कर्म कर्ता के बिना नही होता" इससे क्या तात्पर्य
उत्तर-ससार मे जो कार्य होता है वह कार्य कर्ता के बिना नहीं होता है, जैसे (१) ज्ञान हुआ, वह ज्ञान गुण बिना नही होता (२) दिव्यध्वनि हुई, वह भाषा वर्गणा के बिना नहीं हुई (३) गाली वह भाषा वर्गणा के बिना नहीं हुई । जो मात्र पर्याय का ही मानते हैं द्रव्य को नहीं मानते है उनसे कहा कि 'पर्याय द्रव्य विना नही होती है।' जब अनादिअनन्त कर्ता स्वय स्वतन्त्रता पूर्वक अपना-अपना कार्य करता है ऐसा जाने-माने, तो उसे तुरन्त धर्म को प्राप्ति होती है।
प्रश्न ६-"वस्तु की एकरूप स्थिति नहीं रहती' इससे क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-जो वस्तु है उसका एक-एक समय करके बदलना उसका स्वभाव है। जैसे (१) अभी-अभी यह आदमी हमारी प्रशसा कर रहा था, इतने मे निन्दा क्यो करने लगा ? अरे भाई 'वस्तु की एकरूप स्थिति नही रहती'। (२) अभी थोडा ज्ञान था, ज्यादा केमे हो गया ? 'वस्तु की एकरूप स्थिति नही रहती'। (३) पहले ज्ञान ज्यादा था, अब कम कैसे हो गया ? अरे भाई 'वस्तु की एकरूप स्थिति नही रहती' । (४) इन्द्रभूति गृहीत मिथ्यादष्टि था, उसे भगवान महावीर के समवशरण मे आने पर सम्यग्दर्शन, मुनिपना, गणधरपना, अवधि मन पर्ययज्ञान कसे हो गया ? अरे भाई, 'वस्तु को एक रूप स्थिति नही रहती है ।' (५) मारीच को भगवान आदिनाथ के समवशरण मे सम्यक्त्व नहीं हुआ, शेर पर्याय मे कैसे हो गया ? अरे भाई, 'वस्तु की एकरूप स्थिति नही रहती है। ऐसा जीव जाने तो नियम से विकार का अभाव होकर धर्म की शुरूआत होकर वृद्धि और पूर्णता होती ही है।