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प्रश्न ३-यास्तव मे परिणाम हो निश्चय से कम है इसे समझाइये ?
उत्तर-परिणाम, कार्य, कर्म, दशा, हालत, कन्डोसन, यह सब पर्यायवाची शब्द हैं । परिणाम परिणामी का ही होता है। सबसे पहले निर्णय करना चाहिए यह क्या है ? जैसे किसी ने कहा-बाई ने रोटी बनायी तो विचारो यहाँ कार्य क्या है। रोटी बनाना कार्य है वह आटे से हो वनी है। इसी प्रकार ससार मे जो कार्य होता है वह परिणामी से होता है ऐसा जो समझा उसने 'वास्तव मे परिणाम ही निश्चय से कम है' ऐसा माना। वास्तव मे पहला बोल समझने से (१) ज्ञान हुआ वह ज्ञान मे से आया, (२) सम्यग्दर्शन हुआ वह श्रद्धा गुण मे से हुआ, (३) दिव्यध्वनि हुई वह भापावर्गणा मे से हुई, (४) राग आया वह चारित्र गुण मे से आया आदि वातो का निर्णय हो जाता है।
प्रश्न ४–परिणाम अपने आश्रयभूत परिणामी का ही है अन्य का नहीं-इससे क्या तात्पर्य है।
उत्तर-जो पहले बोल मे नही समझा उसे और स्पष्ट करने के लिए आचार्य भगवान ने अति कृपा की। जैसे (१) ज्ञान हुआ वह ज्ञान गुण मे से ही आया वह आँख, नाक, कान, कर्म के क्षयोपशमादि से नहीं आया। (२) सम्यग्दर्शन हुआ, वह श्रद्धा गुण मे से ही हुआ है देव-गुरु से, दशनमोहनीय के उपशमादि से नही हुआ। (३) दिव्यध्यनि भापावर्गणा से ही आयी है, भगवान से नही । (४) ज्ञान गुण मे से ही ज्ञान आया है चारित्र आदि बाकी गुणो से नही आया है। (५) यथाख्यातचारित्र प्रगटा वह चारित्र गुण मे से ही आया है बाको ज्ञान-श्रद्धा आदि गुणो मे से नही आया आदि बातो का स्पष्टीकरण दूसरे बोल मे अस्ति-नास्ति से समझाया है। इसमे जो कार्य हुआ है वह द्रव्य का ही है, अन्य का नही । एक द्रव्य मे अनन्त गुण है, एक गुण का कार्य दूसरे गुण से हुआ नही है यह बात भी समझायो है।