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। १६४ ) ज्ञायक स्वभाव का आश्रय ले तो तभी आत्मा मे धर्म की शुरूआत, वृद्धि और पूर्णता होगी।
समयसार कलश २११ का रहस्य प्रश्न १-२११वॉ कलश क्या बताता है ? उत्तर-स्वतन्त्रता की घोषणा करता है। प्रश्न २-२११वां कलश तथा उसका अर्थ बताओ? उ०-ननु परिणाम एव किल कर्म विनिश्चयतः
स भवति नापरस्य परिणामिन एव भवेत् । न भवति कर्तृशून्यमिह कर्म न चैकतया
स्थितिरिह वस्तुनो भवतु कर्त तदैव ततः ॥२१॥ अर्थ-वस्तु स्वय ही अपने परिणाम की कर्ता है उसका (वस्तु का) दूसरे के साथ कर्ता कर्मपना नही है । इस बात को इस कलश मे ४ बोलो द्वारा समझाया है। (१) वास्तव मे परिणाम ही निश्चय से कर्म है । (२) परिणाम अपने आश्रयभूत परिणामी का ही होता है अन्य का नही । (३) कर्म-कर्ता के बिना नहीं होता। (४) वस्तु की एक रूप स्थिति नही रहती। इस कलश मे महा सिद्धान्त भरा है। विश्व मे जीव अनन्त, पुदगलद्रव्य अनन्तानन्त, धर्म अधर्म-आकाश एक एक और लोक प्रमाण असख्यात कालद्रव्य है, इन सव द्रव्यो के स्वरूप का नियम क्या है ? ये बात इस कलश मे समझाई है।
(१) कोई गाली देता है; (२) धन चोरी चला जाता है, (३) शरीर मे अनुकूलता या प्रतिकूलता होती है, (४) घर मे कोई मर जाता है, (५) बच्चे कहना नही मानते; (६) लडकी भाग जाती है, (७) लाखो रुपयो का लाभ-नुकसान होता है आदि प्रसग उपस्थित होने पर यदि २११वाँ कलश हमारे सामने होगा तो अशान्ति नही आवेगी, क्योकि ज्ञानी तो जानता है कि 'वस्तु की एकरूप स्थिति नही रहती है।