________________
( १६३ )
प्रश्न -- क्या सिद्धदशा प्राप्त करने के लिए भी पुण्य कर्म, पुण्यभाव, पुण्य को सामग्री तथा परलक्षो ज्ञान के उधाड़ को किचित् मात्र आवश्यकता नहीं है ?
उत्तर- नही है विचारिये । सिद्धशिला ४५ लाख योजन की है उसके नीचे २५ लाख योजन जमीन है और २० लाख योजन पानी ही है। भगवान की वाणी मे आया है कि सिद्धशिला मे कोई जगह सुई की नोक के बराबर भी खाली नहीं है, जहाँ पर अनन्त सिद्ध विराजमान न हो ।
प्रश्न - जहाँ पर जमीन है वहाँ पर तो अनन्त सिद्ध समय श्रेणी से लोकाग्र से विराजमान हैं यह बात समझ मे आती है । परन्तु जहाँ अनादिअनन्त पानी है वहाँ पर भी अनन्त सिद्ध विराजमान है यह बात समझ मे नहीं आती क्योकि जो जीव मोक्ष मे जाता है वह समश्रेणी से हो जाता है, जहाँ पानी-पानी ही है वहाँ से मोक्ष कैसे होगा ?
उत्तर - कोई पूर्व भव का बैरी देव भावलिगी मुनि को उठाकर जैसे घोवो कपडे पछाडता है उठाकर समुद्र मे पछाडे वह वहाँ पर ही केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्ष मे चला जाता है । देखो । बाहर का सयोग कैसा है । इसलिए सिद्धदशा प्राप्त करने के लिए भी पुण्य कर्म, पुण्यभाव, पुण्य की सामग्री और परलक्षी ज्ञान के उघाड की जरूरत नही है ।
T
हे भव्य । तू अनादिअनन्त भगवान रूप शक्ति का पिंड है । उसके आश्रय से ही सम्यग्दर्शनादि, श्रेणी और सिद्धदशा की परलक्षी ज्ञान के उघाड से, पुण्यभाव, पुण्यकर्म और से नही । ऐसा जानकर एक बार अपनी ओर दृष्टि करे तो तुझे पता चले, किसी से भी पूछना ना पडेगा ।
प्राप्ति होती है पुण्य की पदवी
प्रश्न १० - फिर अपने हित के लिए क्या करें ?
उत्तर - अपने कल्याण के लिए पुण्यकर्म, पुण्यभाव, पुण्य की सामग्री तथा परलक्षी ज्ञान के उघाड की रुचि छोडकर अपने त्रिकाली