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________________ (१६१ ). पुण्यभाव, पुण्यकर्म और पुण्य की सामग्री की रुचि रहेगी तब तक उसे सम्यग्यदर्शन की प्राप्ति नही होगी और (२) जब तक पर्याय मे पुण्यपाप का भाव रहेगा तब तक सर्वज्ञ और सर्वदर्शी नही बन सकता। प्रश्न ५-क्या आत्महित साधने के लिए सोक्षमार्ग मे पुण्यकर्मपुण्यभाव, पुण्य की सामग्री तथा परलक्षी ज्ञान के उघाड़ की फिचित् मात्र भी कीमत नहीं है ? ___ उत्तर-वास्तव मे सम्यग्दर्शन प्राप्त करने के लिए; श्रेणी मांडने के लिए, सिद्धदशा प्राप्त करने के लिए पुण्यकर्म, पुण्यभाव, पुण्य की सामग्री तथा परलक्षी ज्ञान के उघाड की किंचित् मात्र आवश्यकता नही है । एक मात्र मैं अखण्ड त्रिकाली परम पारिणामिक भाव रूप हूँ ऐसे अनुभव और ज्ञान की ही आवश्यकता है। प्रश्न ६-क्या सम्यग्दर्शन प्राप्त करने के लिए पुण्य कर्म, पुण्यभाव, पुण्य की सामग्री तथा परलक्षी ज्ञान के उघाड़ को किचित् जरूरत नहीं है ? उत्तर--नही है। विचारो । चार गति के चार जीव हैं। (१) सातवें नरक का नारकी जहाँ पर प्रतिकूल सयोग भरा पड़ा है । (२) नव ग्रे वेयक का मिथ्यादृष्टि देव जहा पर अनुकूल सयोग भरा पड़ा है। (३) स्वयभूरमण समुद्र का मगरमच्छ तिथंच जो जल में पड़ा है। (४) वडा भारी महाराजा मनुष्य जो हीरो के सिंहासन पर बैठा है। इस प्रकार चारो गतियो के जीवो को पुण्य-पाप के सयोगो मे बडा अन्तर है। नारकी-देव को कुमति आदि तीन ज्ञान का उघाड है और मनुष्य-तिर्यच को कुमति आदि दो ज्ञान का उघाड है। चारो गतियो के चारो जीवो को मानो मोटे रूप से ८ बजकर एक मिनट पर सम्यग्दर्शन होना है तो ८ बजे सम्यग्दर्शन के योग्य आत्म सन्मुखतारूप शुभभाव समान होते हैं क्योकि जब जीव को सम्यक्त्व की प्राप्ति होती तब करणलब्धि का तीसरा भेद अनिवृत्तिकरण का अभाव होकर ही होता है इस प्रकार चारो गतिओ के चाय को
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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