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________________ 2 ( १५८ ) - और प्रतिकूल अनिष्ट सयोग से जरा भी डगमगाना नही चाहिए तभी - मोक्षफल की प्राप्ति सम्भव है । प्रश्न ६१ - आजकल जीव मोक्ष का पुरुषार्थ नहीं कर सकता तो - क्या फल से आजकल पूजा नहीं हो सकती है ? उत्तर - शक्तिरूप मोक्ष का आश्रय लेकर दृष्टि मोक्ष प्राप्त होने पर फल से पूजा की शुरूआत हो जाती है । हूं | प्रश्न ६२ - 'मोक्ष पद प्राप्तये फलम्' का कवित्त क्या है ? उ०- जग मे जिसको निज कहता मै, वह छोड़ मुझे चल देता है । मै आकुल व्याकुल हो लेता, व्याकुल का फल व्याकूलता है ।। शान्त निराकुल चेतन हूं, है मुक्तिरमा सहचरि मेरी । यह मोह तडक कर टूट पड़े, प्रभु सार्थक फल पूजा तेरी ॥ अर्ध प्रश्न ६३ - अर्ध के कितने अर्थ हैं ? उत्तर - दो अर्थ है, (१) पूजा की सामग्री, (२) कीमती वस्तु । प्रश्न ६४ - पूजा की सामग्री से क्या तात्पर्य हैं ? उत्तर- मैं भगवान को अष्ट द्रव्य रूपी अघं (सामग्री) से पूजता प्रश्न ६५ - कीमती वस्तु से क्या तात्पर्य है । उत्तर- अमूल्य पद प्राप्त करने के लिए कीमती वस्तु अर्पण - करता हू । प्रश्न ६६ - फोमती वस्तु क्या है ? उत्तर - विजारिये, माँगते है अनर्घपद । बासमती चावल तो घर मे खाने के काम आवेगा और भगवान की पूजा सामग्री में मोटा, टूटा, जरा-सा चावल, जरा-सा नैवेद्य, एक बादाम, दो लोग चढाते हैं । - अच्छा घी तो घर पर काम आ जावेगा मन्दिर मे डाल्डा ही ले जाते
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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