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विचारे, यह खेत जोतकर साफ करके जमीन को पोला बनाने के समान है। (२) पर द्रव्यो मे कर्ता-भोक्ता की बुद्धि मिथ्यात्व है। पूजा-दया-दान-अणुव्रत-महाव्रत-सोलह कारण आदि भावपुण्य बन्ध का कारण है मोक्ष का कारण नही है। पुण्य करते-करते धर्म होगा, निमित्त से उपादान मे कार्य होता है ऐसी मान्यता घोर अज्ञानता है-ऐसा स्वीकार करना यह खेत मे पानी देने के समान है। (३) अज्ञानी जीव अनादि से एक-एक समय करके मोह-राग-द्वेष के कारण दुखी हो रहा अब वर्तमान मे अपने स्वभाव का आश्रय लेकर सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति करे तो यह वीज बोने के समान है। (४) अपनी आत्मा मे विशेष स्थिरता करके चारित्ररूप मोक्ष की प्राप्तियह वृक्ष पर फल के समान है यह फल चढाने का रहस्य है।
प्रश्न ८६ फल क्यो चढ़ाया जाता है ?
उत्तर- हे भगवान | मैंने अनादि से एक-एक समय करके पुण्य से धर्म माना तथा वाह्य क्रियाओ मे सुन्दर फलो के चढाने से धर्म माना। अब मैं उस खोटी बुद्धि का नाश करने के लिए और सच्ची शान्ति प्राप्त करने के लिए फल चढाता है । अत खोटी बुद्धि के नाश के लिए और सच्ची शान्ति प्राप्ति के निमित्त रूप फल चढाया जाता है।
प्रश्न ६०-जब तक मोक्ष की प्राप्ति ना हो तब तक क्या करना चाहिए? ___ उत्तर-जसे - जब देवो को अमृत की इच्छा हुई तब उन्होने समुद्र का मथन किया। मथन करते-करते कीमती रत्न निकले उससे वे सन्तुष्ट नही हुए। तब भी समुद्र का मथन करते रहे तो उन्हे हला-हल जहर प्राप्त हुआ उससे वे भयभीत नही हुए। बाद मे मथते-मथते अमृत को प्राप्ति हुई तब उन्हे शान्ति मिली, क्योकि निश्चित वस्तु को प्राप्ति के बिना धीर-वीर पुरुष विराम नही लेते है, उसी प्रकार हमे अमृतरूपी मोक्ष की प्राप्ति करनी हैं जब तक वह ना मिले, तव तक शुभभावो मे तथा अनुकूल सयोगो मे सन्तुष्ट नहीं होना चाहिए