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( १५४ ) नही है । तभी हम दीप से भगवान की पूजा करने के अधिकारी है यह दीपक हमे शिक्षा देता है।
प्रश्न ७७-'अग्नि' क्या शिक्षा देती है ?
उत्तर-ऐसे-अग्नि मे पाचक, प्रकाशक और दाहक तीन मुख्य गुण है। (१) अग्नि पकने योग्य सव पदार्थो को पका देती है इसलिए अग्नि को पाचक कहा है। (२) अग्नि का स्व-पर को प्रकाशित करने का स्वभाव होने से अग्नि को प्रकाशक कहा है। (३) अग्नि जलने योग्य सव पदार्थों को जला देती है। इसलिए अग्नि को दाहक कहा है; उसी प्रकार आत्मा मे सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र तीन मुत्य गुण है (१) सम्यग्दर्शन पाचक है । (२) सम्यग्ज्ञान स्व-पर प्रकाशक है। (३) सम्यग्चारित्र शुभाशुभ भावो का जला देता है, इसलिए दाहक है अत सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति होने पर ही दीप से पूजा होती है, ऐसा अग्नि हमे शिक्षा देती है। प्रश्न ७८-अज्ञान विनाशनाय दीपम का कवित्त क्या है ?
मेरे चैतन्य सदन में प्रभु ! चिरव्याप्त भयंकर अधियारा। श्रुत दीप बुझा हे करुणा-निधि बीती नहीं कष्टो की कारा अतएव प्रभो ! यह ज्ञान-प्रतीक, समर्पित करने आया हूँ ।
तेरी अन्तर लौ से निज अन्तर दीप जलाने आया हूँ। प्रश्न ७६-प्रज्ञान अन्धकार के पर्यायवाची शब्द क्या क्या हैं ?
उत्तर-पर के साथ एकत्व बुद्धि कहो, मिथ्यात्व कहो, भयकर पाप कहो, शुभभाव के साथ एकत्व वृद्धि कहो, अज्ञान कहो, मोहान्धकार कहो, निगोद कहो, एक ही बात है।
प्रश्न ८०-क्या अज्ञानी दीप से भगवान की पूजा नहीं करता है तो अज्ञानी क्या करे, जिससे दीप से पूजा कर सके ? ।
उत्तर-अपना अनुभव हुए विना दीप से यथार्थ पूजा नही की जा सकती है । इसलिए हे भव्य | तू अपने भगवान की दृष्टि कर, तभी दीप से भगवान की पूजा बने । तब ससार के पदार्थो का जैसा