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सवर - निर्जरा प्रगट करना, यह आस्रव बध के विषय का अज्ञानअन्धकार मिटना है तभी दीप से भगवान की पूजा की ऐसा कहा जा सकता है ।
प्रश्न ७२ - अज्ञान अन्धकार कैसे मिटे - तब दीप से पूजा हो ? उत्तर - एक कमरे मे हजारो वर्षों से अधेरा था । अन्धकार को दूर करने के लिए, क्या फावडे, वन्दूक, फौज, मजदूरो की जरूरत पडेगी ? आप कहेगे नही, बल्कि मात्र दियासलाई का प्रकाश पर्याप्त है, उसी प्रकार अनादिकाल से मिथ्यादृष्टि सुख पाने के लिए पर का विकार का आश्रय करते हैं, परन्तु सुख नही मिलता । सुख पाने के लिए एक मात्र उपाय अपने पारिणामिक भाव का आश्रय लेना ही है । ऐसा जाने माने तो सुख पाने के लिए अज्ञान - अधकार मिटे और दीप से यथार्थ पूजा की, ऐसा कहा जावे ।
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प्रश्न ७३ - दीपक क्या बताता है ?
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उत्तर - दीपक है, उसके सामने सोना रखे, तो क्या उसकी ज्योति बढ जावेगी ? कोयला रखे, तो क्या उसकी ज्योति मद हो जावेगी ? आप कहेगे नही, क्योकि दीपक का स्वभाव स्व पर प्रकाशक है; उसी प्रकार हमारे सामने अनुकूलता हो या प्रतिकूलता हो यह सब हमारे ज्ञान का ज्ञ ेय है । चैतन्य दीपक के सामने अनन्तानन्त प्रतिकूलता होने पर भी उसके स्व पर प्रकाशकता मे कुछ भी हानि नही होती ऐसा माने-जाने, तो दीप से पूजा की, यह दीपक हमे बताता है ।
प्रश्न ७४ - क्या मिथ्यात्व का अभाव होने पर ही दीप से पूजा की ऐसा कहा जाता है ?
उत्तर - जैसे- दीपक मे जब तक तेल रहता है। तब तक वह जलता रहता है। तेल के समाप्त होने पर दीपक बुझ जाता है, उसी प्रकार आत्मा मे जब तक मिथ्यात्व राग-द्वेष रहता है तब तक अज्ञानी दुखी होता हुआ चारो गतियो मे घूमकर निगोद चला जाता