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भोक्ता भोग्य का सम्बन्ध नही है । क्योकि इनकी मेरे द्रव्य से पृथक् चाल है ऐसा मानकर अपना आश्रय ले तो जीव के विषय का अज्ञान अन्धकार मिटे तो दीप से भगवान की यथार्थ पूजा की ।
प्रश्न ६८ - अजीव के विषय मे अज्ञान अन्धकार क्या है ? उत्तर - शरीर की उत्पत्ति होने से मैं उत्पन्न हुआ, शरीर के नाश होने में मैं मर गया । धन शरीर आदि जड पदार्थों में परिवर्तन होने से अपनी आत्मा मे, इष्ट-अनिष्टपना मानना । शरीर की उष्ण-ठडी आदि अवस्था होने पर मैं ठन्डा-गरम हो गया । शरीर मे क्षुधा तृषा आदि अवस्था होने पर मुझ क्षुधा तृपा रोग आदि हो रहे है । शरीर कट जाने पर मैं कट गया। मै काला, मै गोरा, मैं कुडा आदि मानना तथा धर्म द्रव्य मुझे चलाता है । अधर्म द्रव्य मुझे ठहराता है । आकाश मुझे जगह देता है । काल मुझे परिणमन कराता है । यह अजीव सम्बन्धी अज्ञान अन्धकार है ।
प्रश्न ६६ - अजीव के विषय का अज्ञान अन्धकार कैसे मिटे ?
उत्तर - पुद्गल का एक-एक परमाणु, धर्म-अधर्म - आकाश एक-एक और लोक प्रमाण असख्यात कालद्रव्य - यह सब द्रव्य अपनी-अपनी एक-एक व्यजन पर्याय और अनन्त अनन्त अर्थ पर्याय सहित विराज रहे हैं । मेरा इनसे किसी भी प्रकार का, किसी भी अपेक्षा कोई सवध नही है । ऐसा मानकर अपने ज्ञायक परम पारिणमिक भाव का आश्रय ले तो अजीव के विषय का अज्ञान अन्धकार मिटे तो दीप से पूजा की, ऐसा कहा जा सकता है ।
प्रश्न ७० - आम्रव वध के विषय से अज्ञान अन्धकार क्या है ? उत्तर - पुण्य-पाप दोनो विभाव परिणति से उत्पन्न हुए है । इस लिए दोनो वध रूप ही है । पुण्य-पाप भावो को अच्छे-बुरे मानना, यह आस्रव बध के विषय मे अज्ञान अन्धकार है ।
प्रश्न ७१ - आस्रव-बंध के विषय मे अज्ञान अन्धकार कैसे मिटे? उत्तर - आस्रव-बध रहित आत्मा के स्वभाव का आश्रय लेकर