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किसी भी प्रकार का रोग ना हो, पुण्य का सयोग हमेशा बना रहे; ऐसी सासारिक इच्छा किया करते हैं । इन बातो के लिए नैवेद्य से पूजा करना चारो गतियो मे घूमकर निगोद का पात्र बनता है । पर वस्तुओ मे तथा शुभाशुभ भावो मे एकत्वबुद्धि मिथ्यात्व है और मिथ्यात्व सात व्यसनो से भी भयकर महान पाप है । इसलिए सासारिक लाभ के लिए नैवेद्य से पूजा करना अनर्थकारी है ।
प्रश्न ५८ - आचार्यकल्प पं० टोडरमल जी ने सांसारिक प्रयोजन के लिए नैवेद्य आदि से पूजा करने वाले को किस-किस नाम से सम्बोधन किया है ?
उत्तर -- जैनधर्म का सेवन ससार के नाश के लिए किया जाता है, जो उनके द्वारा सासारिक प्रयोजन साधना चाहते हैं वह बडा अन्याय है । इसलिए वे तो मिथ्यादृष्टि है ही । इस प्रकार सासारिक प्रयोजन सहित जो धर्म साधते हैं, वे पापी भी हैं और मिथ्यादृष्टि तो है ही । (मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ २१६ )
प्रश्न ५६ - क्या करें तो 'नैवेद्य' चढ़ाना सार्थक कहा जावे ?
उत्तर - सयोगो को मिलाने हटाने मे जीव की चतुराई जरा भी कार्यकारी नही है । आत्मा को देह नही, मन नही, वाणी नही, तब आत्मा पर वस्तुओं का आहार करे ( ग्रहण करे ) यह बात झूठी है । मेरी आत्मा को किसी भी पर पदार्थ की किंचित मात्र भी आवश्यकता नही है ऐसा श्रद्धान- ज्ञान हो, तब नैवेद्य से पूजा की सार्थकता कही जावेगी ।
प्रश्न ६० - क्या संयोगों के मिलाने - हटाने में जीव की चतुराई जरा भी कार्यकारी नहीं है ?
उत्तर - समयसार कलशटीका कलश १६७ मे लिखा है कि "कर्म सामग्री मे अभिलाषा मात्र मिथ्यात्व है ऐसा गणधरदेव ने कहा है ।" तथा कलश १६८ मे कहा कि "जिस जीव ने अपने विशुद्ध अथवा