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( १४७ ) उत्तर--अपने को जाने विना किसकी पूजा, किसकी यात्रा, किसकी सामायिक, किसकी दया ? अपने आपका अनुभव हुए विना पुष्प से पूजा करना, आत्म हित के लिये कुछ कार्यकारी नहीं है।
प्रश्न ५५-- 'काम बाण विध्वंशनाय पुष्पम का कवित्त क्या है ? उ०-यह पुष्प सुकोमल कितना है, तन मे माया कुछ शेष नहीं।
निज अन्तर का प्रभु भेद कहूं, उसमें ऋजुता का लेश नहीं। चिन्तन कुछ, फिर सम्भाषण कुछ, फिरिया कुछ को कुछ होती है। स्थिरता निज में प्रभु पाऊं जो, अन्तर का कालुष घोती है।
मायाचार रहित मेरी आत्मा का स्वरूप है ऐसा श्रद्धान-ज्ञानआचरण हो पुष्प से भगवान आत्मा की पूजा है।
नैवेद्य प्रश्न ५६-नैवेद्य से भगवान की पूजा क्या है ?
उत्तर-(१) अनादिकाल से आज तक कितना आहार ग्रहण किया लेकिन भूख शान्त नहीं हुई। (२) अनादिकाल से आज तक अगणित पदार्थों की इच्छा की, लेकिन रचमात्र भी तृप्ति नही हुई। मेरा स्वभाव अनाहारी और इच्छा रहित है ऐसा जानकर अपने अनाहारी स्वभाव का आश्रय लेकर पर्याय में अनाहारी और इच्छा रहित दशा प्रगट करे, तब नैवेद्य से भगवान की पूजा की। ऐसा कहा जाता है।
प्रश्न ५७-अज्ञानी नैवेद्य से क्यों पूजा करता है ?
उत्तर--भक्ताभर का पाठ पढता है। सिद्धचक्र का पाठ थापता है। उसके बदले माँगता है कि हे भगवान मुझे खूब धन मिले, मेरे लडके पैदा हो, लडकियाँ ना हो, दुनियाँ मे सबसे बडा कहलाऊँ, सब मेरा मान करे; सुन्दर-सुन्दर स्त्रियाँ मेरी रानिया हो, शरीर मे