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________________ को छोड दिया है। अब मैं कामरूपी पुष्प से घाता नहीं जा सकता। क्योंकि मैने अपनी आत्मा को काम बाण रूपी पुष्प से पृथक् अनुभव कर लिया है । तभी पुष्प से भगवान की पूजा सार्थक है। प्रश्न ५०--पुष्प हमे क्या शिक्षा देता है ? उत्तर- रस्ते चलते हुए मुसाफिर ने जगल मे एक बडा सुन्दर गुलाब का फूल खिला हुआ देखा। वह फूल सारे वातावरण को सौन्दर्य अर्पण कर रहा था । जाने वाले मुसाफिरो को सुगन्ध देता था और पवन की लहरो से वह डोल रहा था। प्रश्न ५१-चलते हुए मुसाफिर ने फूल से क्या पूछा ? उत्तर-हे फूल । तुम्हारा जीवन बहुत अल्प है और साय काल के समय तुम कुम्हाला जावोगे। फिर तुम इतने हस रहे हो; डोल रहे हो; प्रसन्न हो रहे हो, सुगन्ध दे रहे हो और वातावरण को सौन्दर्य अर्पण कर रहे हो, इसमे तुम्हारे जीवन का क्या मर्म है। प्रश्न ५२-फूल ने क्या उत्तर दिया? उत्तर-कितना जीवन जिया यह मत पूछो किन्तु किस प्रकार जिया । यह पूछना चाहिए । प्रश्न ५३-पुष्प से हमें क्या शिक्षा लेनी चाहिए ? उत्तर-अल्प या अधिक आयु से क्या मतलब है। अगर किसी की उम्र आठ वर्ष की है । उसमे आत्मज्ञान करले तो उत्तम है। किसी की उम्र सौ वर्ष की है उसमे आत्म ज्ञान ना करे तो व्यर्थ है। [अ] जैसे फूल खुशबू देता है, डोलता है, उसी प्रकार हम भी अपने ज्ञायक स्वभाव मे डोले रमणता करे, तब ही भगवान की पुष्प से यथार्थ पूजा की। [आ] जैसे-पुष्प वाह्य मे और अन्तर मे सुकोमल है, वैसे ही अपना आत्म वाह्य-आभ्यतर' सुकोमल हो, तब भगवान की यथार्थ पूजा पुष्प से हो सकती है। प्रश्न ५४-अपने को जाने विना पुष्प से पूजा क्यो नहीं हो सकती है ?
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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