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अक्षत
प्रश्न ४३--अक्षत से पूजा करना कब ठीक कहलायेगा?
उत्तर-जिस प्रकार कमोद मे से सफेद चावल निकलता है। उसमे छिलका, रतास और सफेद चावल तीन चीजे होती है। उसमे से छिलका और रतास निकाल देने योग्य है और चावल खाने योग्य है, उसी प्रकार अनादि काल से एक-एक समय करके अपनी मूर्खतावश द्रव्यकर्म-नोकर्म रूप छिलके के साथ तथा भावकर्म रूप रतास के साथ एकत्व वृद्धि करता रहेगा तब तक अक्षत से भगवान की यथार्थ पूजा नही कर सकता। परन्तु जब यह जीव मेरा आत्मा ही एकमात्र आश्रय करने योग्य है अपनी आत्मा के अलावा अनन्त जीव अनन्तानन्त पुद्गल, धर्म-अधर्म-आकाश एक-एक और लोक प्रमाण असख्यात' कालद्रव्य छिलके के समान है और दया दान-पूजा अणुव्रत-महानतादि भाव रतास के समान है ऐसा जानकर अपने आत्मा का आश्रय ले, तो अक्षत से पूजा करना ठीक है।
प्रश्न ४४-अक्षयपद की प्राप्ति कैसे हो?
उत्तर-बासमती चावल तो खाने के लिये रखता है और टूटे-फूटे चावल मन्दिर में चढाने को रखता है। क्या इससे अक्षय पद मिलेगा? कभी नही मिलेगा । अरे भाई । अक्षय पद प्राप्त करने के लिये मोहराग-द्वप रहित मेरी आत्मा का स्वभाव है। ऐसा जानकर अपने अक्षय-ध्र व-नित्य स्वभाव का आश्रय ले, तो पर्याय मे अक्षय पद की प्राप्ति होगी, तव अक्षय से यथार्थ पूजा कही जा सकती है।
प्रश्न ४५-पर्याय मे बिगाड़ खाता होने पर भी आत्मा का स्वभाव नष्ट क्यो नही होता है ?
उत्तर-जैसे-चावल सफेद और अखण्ड है। उसी प्रकार मेरी आत्मा स्वच्छ और अखण्ड है। पर्याय मे बिगाडखाता होने पर भी द्रव्य कभी नष्ट नहीं होता है ऐसा जिसको भान हो उसने अक्षत् से