________________
( १४३ )
अर्थ -- सोना, सुनार से कहता है कि हे सुनार । तुम मुझे चाहे कितनी बार तपाओ, उससे मेरे में तो शुद्धि की वृद्धि ही होती है लेकिन तेरे मुह मे राख के अलावा कुछ भी नही मिलेगा, उसी प्रकार हे आत्मा । तुम्हे सोने के समान कोई तपाता नही है तब फिर तुम क्यो आकुलित होते हो ? अत. आकुलता रहित प्राणी ही भगवान की चन्दन से पूजा कर सकता है ।
प्रश्न ३६ - संसार ताप क्या है ?
उत्तर - पर मे कर्ता- भोक्ता की बुद्धि ही ससार ताप है । प्रश्न ४० -- पर मे कर्ता-भोक्ता की बुद्धि का अभाव कैसे हो ? उत्तर--सत् द्रव्य लक्षणम् और उत्पाद-व्यय- प्रोव्य युक्त सत् ॥ का रहस्य जाने अर्थात् 'अनादिनिधन वस्तुये भिन्न-भिन्न अपनीअपनी मर्यादा लिए परिणाम हैं, काई किसी का परिणमाया परिणमता 'नाही' ऐसा जाने-माने तो पर मे कर्ता-भोक्ता की बुद्धि का अभाव हो, तब चन्दन से पूजा की, कहा जा सकता है |
प्रश्न ४१ - ' संसार ताप विनाशनाय चन्दनम् ' का कवित्त क्या हैं ?
,
-जड चेतन की सब परिणति प्रभु, अपने-अपने में होती है । अनुकूल कहे, प्रतिकूल कहे, यह झूठी मन की वृत्ती है । प्रतिकूल संयोगो मे क्रोधित होकर संसार बढ़ाया है। शीतलता पाने आया है । प्रश्न ४२ - क्या कर्ता बुद्धि का अभाव हुए बिना चन्दन से पूजा नही हो सकती है ?
सन्तप्त हृदय प्रभु-चन्दन सम,
उ०
-
उत्तर - जैसे - रेत मे तेल निकालने के अमेरिका दूं या रूस को दूँ, यह प्रश्न ही मे कर्ता बुद्धि का अभाव हुए बिना चन्दन ही झूठा है ।
लिए मशीनो का आर्डर झूठा है, उसी प्रकार पर से पूजा करना, यह प्रश्न