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________________ (१४२ ) उत्तर-एक आदमी था। उसके घर में एक बहुत पुरानी मैली एक लकडो पड़ी थी। वह थी चन्दन को, परन्तु उसे मालूम नही था। वह लकडी घर पर पडी-पडी उसे अच्छी नहीं लगती थी, परन्तु वह खुशबू देती थी। उस आदमी ने गुस्सा मे आकर उस लकडी को कूड़े के ढेर पर फेक दिया। थोड़ी देर के वाद आकर देखा, तो वह वहाँ पर खुशबू फैला रही है। उस आदमी को वडा गुस्सा आया और उस लकडी को उठाकर अग्नि मे डाल दिया। जलते-जलते उसकी खुशबू चारो तरफ फैल गयी, उसी प्रकार हे आत्मा । चन्दन की लकडी के समान काडे पर गेरना, चूल्हे मे जला देना, ऐसा तुम्हारे साथ नही होता है। जबकि चन्दन की लकडी को कूडे पर गेरने पर और आग पर रख देने पर भी वह अपने खुशबू के स्वभाव को नही छोडती है तब तुम अपने स्वभाव को क्यो छोडते हो? अपने स्वभाव को नहीं छोडा, तव चन्दन से पूजा की, कहा जा सकेगा। प्रश्न ३७-गन्ना हमे क्या शिक्षा देता है ? उत्तर-जैसे-गन्ने को कोल्ह मे पेलते हैं तो भी वह मीठा रस देता है । रस को औटाओ, तो वह गुड बन जाता है, तो भी वह अपने मोठे स्वभाव को नही छोडना है, उसी प्रकार हे आत्मा, गन्ने के समान पेलना, और रस के समान औटना, तुम्हारे साथ नही होता तो तुम अपने जानने-देखने के स्वभाव को क्यो भूलते हो? नही भूलना चाहिए। अपने ज्ञायक परमात्मा को जानने वाला ही चन्दन से पूजा का अधिकारी है यह गन्ना हमे शिक्षा देता है । प्रश्न ३८- सोना सुनार से क्या कहता है ? • उन्नर-हे हेमकर | पर दुःख विचार मूढ, कि माँ मुह क्षिपसि चार शतानि वन्हौ। दग्धे पुनर्मपि भवन्ति गुणातिरेको, लाभः परम खल मुखे तव भस्म पातः॥
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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