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________________ ( १३६ ) जावे, तो वह उसी समय शीतल हो जाता है; उसी प्रकार वह जीव अनादिकाल से एक-एक समय करके सयोगो और सयोगी भावो मे ( अनुकूलता व प्रतिकूलता मे) पागल और दुखी हो रहा है। वह जीव चन्दन से भगवान की पूजा नही कर सकता है। यदि हमारा हृदय भी बावना चन्दन के समान शीतल हो जावे और ज्ञातादृष्टा वुद्धि प्रगट जावे, तो हम चन्दन से भगवान की यथार्थ पूजा करने के अधिकारी है । प्रश्न ३१ - पर मे एकत्व बुद्धि दूर हुए बिना चन्दन से पूजा नहीं हो सकती इसको जरा द्रष्टान्त देकर समझाइये ? - L उत्तर - नमि नाम का एक राजा था । उसके शरीर मे दाहज्वर उत्पन्न हो गया । उसके उपचार के लिए वंद्यो ने बावना चन्दन का लेप बताया । रानियो ने तत्काल चन्दन घिसना शुरू कर दिया । रानियो के हाथ जेवरं कगनो से भरे होने के कारण, बडी तेज ध्वनि होने लगी । क्योकि रानियो ने तेजी से चन्दन घिसना शुरू कर दिया था । तेज ध्वनि होने के कारण राजा के सिर मे दर्द हो गया । राजा ने कहा, इतनी तेज आवाज के कारण मेरा सर फटा जा रहा है इसे बन्द करो । रानियो ने सोचा, कि दाह ज्वर के कारण चन्दन' का लेप जरूरी है । उन्होने अपने-अपने हाथो मे एक - एक सुहागचूडी रखकर तमाम जेवर, कगन आदि निकाल- निकाल कर रख दिये और सवने पुन चन्दन घिसना शुरू किया। कुछ देर बाद राजा ने कहा " क्या चन्दन घिसना बन्द कर दिया ?" रानियो ने कहा “नही महाराज, हमने एक-एक सुहाग चूडी हाथ मे रखकर बाकी जेवर कगन आदि उतार कर चन्दन घिसना चालू रक्खा इस कारण आवाज बन्द है ।" नमि राजा को विचार आया, अहो: । अहो । जहाँ एक है, वहाँ आनन्द है और जहाँ अनेक है वहाँ खलबलाहट है। जहाँ देखो। एक ही सुन्दर है ।
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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