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________________ ( १३८ ) बजाय पांच लाख रुपया ब्राह्मण को देने को लिख दिया। आखिर खजान्ची को पाँच लाख रुपया ब्राह्मण को देने पडा । इसलिए लोभी मनुप्य भगवान की जल से यथार्थ पूजा नही कर सकता है। . प्रश्न २८-क्या मिथ्यात्व का अभाव हुए बिना, जिनवर के कहे अनुसार चलने वाला भी जल से भगवान की पूजा नहीं कर सकता उत्तर-नही कर सकता है, क्योकि समयसार गा० २७३ मे "भगवान के कहे हुए समिति गुप्ति पालन करता हुआ भी मुनि को मिथ्यादृष्टि, असयमी, पापी कहा है । तथा प्रवचनसार गा० २७१ मे ससार का नेता कहा है। इसलिये अपने त्रिकाली भगवान का आश्रय लेकर मिथ्यात्व का अभाव होने पर ही जल से भगवान की यथार्थ पूजा की. ऐसा कहा जा सकता है अन्यथा नहीं। क्योकि 'ॐ ह्री देव-गुरू-शास्त्रभ्यो मिथ्यात्व मल विनाशनाय जल निर्वपामीति स्वाहा' ऐसा पूजा मे कहा है। ' प्रश्न २६-जल चढ़ाने का देव-गुरु-शास्त्र की पूजा का छन्द क्या है ? उ.-इन्द्रिय के भोग मधुर विष सम, लावण्यमयी कंचन काया। यह सब कुछ जड की क्रीड़ा है, मैं अब तक जान नहीं पाया। मैं भूल स्वयं के वैभव को, पर ममता मे मटकाया हूं। अब निर्मल सम्यक् नीर लिए, मिथ्यामल धोने आया है। - चन्दन प्रश्न ३०-क्या ज्ञाता-द्रष्टापना प्रकट किये बिना चन्दन से भगवान की पूजा का अधिकारी नहीं है ? उत्तर-जैसे-गरम उबलते हुए तेल मे यदि नारियल गेरा जावे तो, तत्काल ही टुकड़े-टुकड़े हो जाते है और नारियल जलकर खाक हो जाता है । उसी उबलते हुए तेल मे जरा सा बावना चन्दन गेरा
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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