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गतियो मे घूमकर निगोद मे जाता है क्योकि कुन्दकुन्द भगवान ने समयसार की ८५ वी गाथा की टीका में दूसरे की क्रिया, अपनी मानने वाले को "जिनमत से बाहर और द्विक्रियावादी कहा है ।"
प्रश्न १६ - क्या सामग्री बनाना चढ़ाना और पूजा-पाठ का शब्द आत्मा के भाव बिना होता है ?
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उत्तर - हाँ भाई | आत्मा के भाव का उसके साथ अत्यन्त्याभाव है | वास्तव मे सामग्री चढाने का, पूजा-पाठ के शब्द निकलने का साधक जीव के अस्थिरता सम्बन्धी राग का और ज्ञान करने का एक ही समय है; सब अपने अपने रूप से स्वतन्त्र हैं । अज्ञानी को जडचेतन की स्वतन्त्रता का ज्ञान नही है । अज्ञानी जीव सामग्री चढातेपूजा पाठ आदि बोलते समय मिथ्यात्व को पुष्टि करते हैं । इसलिए पात्र जीवो को एक मात्र अपने त्रिकाली भगवान का आश्रय लेकर सम्यग्दर्शन प्राप्त करना चाहिए तब पूजा आदि विकल्पो को पराश्रितों व्यवहार कहा जा सकता है क्योकि स्वाश्रितो निश्चय बिना पराश्रितों व्यवहार नही कहा जा सकता है ।
जल
प्रश्न २० - उदक अर्थात् जल से पूजा कौन कर सकता है और कौन नहीं कर सकता है ?
उत्तर - सबसे प्रथम जल से पूजा की जाती है उसका कारण यह है कि जल नरम प्रवाहित द्रवीभूत है । उसी प्रकार जिसका हृदय कठोर हो, तीव्रकषायी हो, वह भगवान की पूजा करने लायक नहीं है और जिसका हृदय द्रवीभूत नरम अर्थात् मन्दकषायी हो, वह ही भगवान की जल से यथार्थ पूजा कर सकता है ।
प्रश्न २१ - जल से भगवान को पूजा का अधिकारी कौन है और कौन नहीं है ?
उत्तर -- जल अस्वच्छता का नाश कर स्वच्छता करता है । पूजन