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(. १३१ ), का नही । इसलिए सत्य कथन से किसी को भी हानि नही हो सकती है। सम्यग्दर्शन प्राप्त किए बिना पूजा-पाठ आदि कार्यकारी नही हो सकते है। इसलिए पात्र जीवो को प्रथम सम्यग्दर्शन प्राप्त करना चाहिए। सम्यग्दर्शन स्व-पर का श्रद्धान करने पर होता है। तथा वह श्रद्धान द्रव्यानुयोग का अभ्यास करने से होता है। इसलिए प्रथम द्रव्यानुयोग के अनुसार श्रद्धान करके सम्यग्दृष्टि बनाना योग्य है। बुधजन जी ने छहढाला मे कहा है कि "सम्यक् सहज स्वभाव आपका अनुभव करना । या बिन जप-तप व्यर्थ कष्ट के माही पडना।"
प्रश्न १३-किसको पूजना चाहिए?
उत्तर-"जिन गृहे जिननाथमह यजे" (अह) मैं (जिननाथ) जिननाथ को (जिनगृहे) जिनमन्दिर मे (यजे) पूजता है।
प्रश्न १३-जिननाथ कौन है ?
उत्तर-अरहत-सिद्धादि जिननाथ निमित्तरूप हैं। वास्तव में अपना त्रिकाली स्वभाव वह जिननाथ है । अपने जिननाथ का आश्रय लेने पर सच्चे जिननाथ का पता चलता है क्योकि अनुपचार हुए विना उपचार का आरोप नही आ सकता है।
प्रश्न १४-'नाथ' किसे कहते हैं ?
उत्तर-जो प्राप्त की रक्षा करे और जो प्राप्त नही है उसे प्राप्त करावे वह नाथ है अर्थात् अपने त्रिकाली नाथ के आश्रय से जो शुद्धता प्रकट हुई है उसकी रक्षा करे और जो शुद्धता अप्रगट है उसे प्राप्त करावे, वह वास्तव मे अपना त्रिकाली भगवान वह "नाथ" है निमित्तरूप पचपरमेष्टी वह अपने नाथ हैं।
प्रश्न १५-(जिनगृहे) मन्दिर कैसा है ?
उत्तर-"धवल मगल गानरवाकले" उज्ज्वल और कल्याणकारी स्तवनो की आवाजो से गूंज रहा है, ऐसा मन्दिर है।
प्रश्न १६-आजकल मन्दिरो मे उज्ज्वल और कल्याणकारी स्तवनो की आवाजो की गूंज के अलावा, क्या देखा जाता है ?