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पूजा करते-करते धर्म की प्राप्ति होती है । यह भाव अनन्त ससार का कारण है। (५) अपनी शक्तिरूप पूजा का परिपूर्ण आश्रय लीनता होने पर साध्यदशा की प्राप्ति पूर्ण भाव पूजा है। यह क्षायिक दशा सादिक्षनन्त रहती है। यह पूजा का फल है।
प्रश्न १०-पाँच प्रकार की पूजा मे नौ पदार्थ, काल, पांच भाव, संयोग आदि पांच बोल, देव-गुरु-धर्म, हेय-उपादेय-ज्ञ य, नमस्कार, सुखदायक दुःखदायक, लगाकर वताओ ताकि स्पष्ट रूप से समझ में आवे ?
उत्तर-(१) शक्तिरूप पूजा == जीव । (२) एकदेश भावपूजा= सवर-निर्जरा। (३) द्रव्य पूजा=आस्रव-वन्ध, पुण्य-पाप। (४) जड-पूजा-अजीव; (५) पूर्ण भाव पूजा-मोक्ष है। इसी प्रकार वाकी बोल लगाकर लाभ-नुकसान बताओ?
प्रश्न ११-अपनी आत्मा का अनुभव हुए विना पूजा-पाठ आदि कुछ भी कार्यकारी नहीं है। ऐसा आप कहते हो तोजो लोग वर्तमान मे सम्यग्दर्शन के बिना पूजा पाठ आदि करते हैं वह छोड़ देंगे। इसलिए ऐसा कहने से जीवों का बुरा होना सम्भव है ?
उत्तर-सत्य से किसी भी जीव की हानि होगी ऐसा कहना ही बडी भूल है अथवा असत् कथन से लोगो को लाभ मानने के वरावर है। सत का श्रवण या अध्ययन करने से जीवो को कभी हानि हो ही नही सकती। पूजा, पाठ, सिद्धचक्र का पाठ, सामायिक आदि करने वाले ज्ञानी है या अज्ञानी-यह जानना आवश्यक है । यदि पूजा-पाठ आदि करने वाले अज्ञानी हैं, तो उनके सच्चे पूजा-पाठ आदि है ही नहीं । इसलिए उन्हे छोडने का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता। यदि पूजा पाठ आदि करने वाले ज्ञानी होगे तो छद्मस्थ दशा मे वे पूजा-पाठ आदि का त्याग करके अशुभ मे जावेगे, ऐसा मानना न्याय के विरुद्ध है। परन्तु ऐसा हो सकता है कि वे क्रमश द्रव्यपूजा पाठ आदि शुभभावो को टालकर शुद्ध भाव की वृद्धि करे और क्रमशः पूर्ण भाव पूजा की प्राप्ति करे और यह तो लाभ का कारण है, हानि