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उत्तर - शक्तिरूप पूजा के आश्रय से जो एकदेश शुद्धि प्रगटी । वह एकदेश भाव पूजा है । यह चौथे गुणस्थान से १२व गुणस्थान तक होती है । अपनी आत्मा का अनुभव हुए बिना एकदेश भावपूजा की प्राप्ति नही हो सकती है ।
प्रश्न ६- द्रव्य पूजा क्या है ?
उत्तर - शक्तिरूप पूजा के आश्रय से एकदेश शुद्धि प्रगटी । उसके साथ गुणस्थान अनुसार ज्ञानी को अस्थिरता सम्बन्धी जो शुभभाव है वह द्रव्यपूजा है और वह बन्ध का कारण है । लेकिन ज्ञानी को भूमिकानुसार इसी प्रकार का राग होता है' करता नही है । यह द्रव्य पूजा भी वास्तव मे ज्ञानी को होती है अज्ञानी को नही होती है । प्रश्न ७ - जड़ पूजा क्या है ?
उत्तर - सामग्री चढाने की क्रिया, पूजा बोलने की क्रिया आदि जड़ पूजा है । यह पुद्गल की क्रिया है । ना यह पुण्य है, ना पाप है, ना धर्म है । परन्तु ज्ञानी के द्रव्यपूजा का और जड पूजा मे निमित्तनैमित्तिक सम्बन्ध है |
प्रश्न ८ - पूर्ण भाव पूजा क्या है ?
उत्तर - शक्ति रूप पूजा का परिपूर्ण आश्रय लेना अर्थात् आत्मा की सम्पूर्ण शुद्धि, यह पूर्ण भाव पूजा है । यह अरहत और सिद्ध अवस्था है ।
प्रश्न - पांचो प्रकार की पूजा का क्या क्या फल है ? उत्तर -- ( १ ) शक्तिरूप पूजा कहो, भगवान बनने की शक्ति कहो, परम पारिणामिक भाव कहो, ज्ञायक भाव कहो, स्वभाव त्रिकाली कहो, या जीव कहो एक ही बात है । (२) शक्ति रूप पूजा का आश्रय लेने से ही एकदेश भाव पूजा की प्राप्ति होती है यह शुद्ध भाव है । (३) एक देशभाव पूजा के साथ अस्थिरता सम्बन्धी राग हे बुद्धि से आता है । यह द्रव्य पूजा, पुण्य बन्ध का कारण है । ( ४ ) जड़ पूजा शरीर की क्रिया है जो इसका मालिक बनता है वह चारो गतियो मे घूमकर निगोद की प्राप्ति करता है । जड पूजा और द्रव्य