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( १२२ ) उत्तर-पहले तत्त्वज्ञान हो, पश्चात् उदासीन (शुद्ध) परिणाम होते हैं । परीपहादि सहने की शक्ति होती है, तब वह स्वयमेव मुनि होना चाहता है और तब श्री गुरु मुनि धर्म अगीकार कराते है। (मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ १७६)
प्रश्न 2६-वर्तमान में कंसी विपरीतता है ?
उत्तर-तत्वज्ञान रहित विषय-कषायासक्त जीवो को माया से व लोभ दिखाकर मुनि पद देना, अन्यथा प्रवृत्ति कराना सो वडा अन्याय है। सो हाय हाय । यह जगत राजा से रहित है, कोई अन्य पूछने वाला नही है । (मोक्ष मार्ग प्रकाशक पृष्ठ १७६ तथा १८१)
प्रश्न २७-जैन शास्त्रो मे वर्तमान मे केवली का तो अभाव कहा है। मुनि का तो अभाव नही कहा है ?
उत्तर-ऐसा तो कहा नहीं है कि इन देशो मे सद्भाव रहेगा, परन्तु भरतक्षेत्र मे कहते है सो भरतक्षेत्र तो बहुत बड़ा है, कही सद्भाव होगा इसलिए अभाव नही कहा है। यदि जहाँ तुम रहते हो उसी क्षेत्र में सद्भाव मानोगे, तो जहाँ ऐसे भी गुरु नही मिलेगे, वहाँ जावेगे तब किस को गुरु मानोगे ? जिस प्रकार हसो का सद्भाव वर्तमान मे कहा है, परन्तु हस दिखायी नही देते तो और पक्षियो को हस नही माना जाता । उसी प्रकार वर्तमान मे मुनियो का सद्भाव कहा है परन्तु मुनि दिखायी नहीं देते, तो औरो को तो मुनि माना नही जा सकता। (मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ १८४)
प्रश्न २८ अब श्रावक भी तो जैसे सम्भव है वैसे नहीं है इसलिए जैसे श्रावक वैसे मुनि ?
उत्तर-श्रावक सज्ञा तो शास्त्र मे सर्व गृहस्थ जैनियो को है। श्रेणिक भी असयमी था, उसे उत्तरपुराण मे श्रावकोत्तम कहा है। बारह सभाओ मे श्रावक कहे वहां सर्व व्रतधारी नही थे । यदि सर्व व्रतधारी होते, तो असयत मनुष्यो की अलग सख्या कही जाती सो, कही नहीं है, इसलिए गृहस्थ जैन श्रावक नाम प्राप्त करता है और मुनि सज्ञा तो निम्रन्थ के सिवाय कही नहीं कही है । श्रावक के आठ