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प्रश्न १७ - भरतक्षत्र पंचम समय, साधु परिग्रह वत, कोटि सात अरू अर्ध सव, नरकहि जाय परन्तु ||२८|| ब्रह्मविलास पृष्ठ २७८ में ऐसा क्यों कहा है ?
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उत्तर - मुनि नाम रखा कर ग्रन्थमाला चलावे, मन्दिर बनवाने का तथा मन्दिरो को प्रतिष्ठा कराने का कार्य करे, चेला चेलियो से अपने को बडा माने, हीटर लगावे, घडी, चश्मा आदि अपने पास रक्खे, शहरो मे रहे, श्रावको को बैल की तरह हाँकै दातार की स्तुति करके दानादि ग्रहण करे, वस्त्रो मे आसक्त हो, परिग्रह ग्रहण करने वाला हो, याचना सहित हो, अध कर्म दोषो मे रत हो । यन्त्रमन्त्र तन्त्रादि करते हो । गृहस्थो के बालको को प्रसन्न करना, चार कहना मन्त्र - औषधि ज्योतिषादि कार्य बतलाना तथा किया कराया अनुमोदित भोजन लेना आदि कार्यों मे रत रहते हो तथा शुभ भावो से मोक्षमार्ग और मोक्ष होता है। निमित्त से उपादान मे कार्य होता है व्यवहार के कथन को सच्चा कथन मानने और अनुमोदना करने वाले भरतक्षेत्र से पचमकाल मे साढे सात करोड मुनि नरक जायेगे । ऐसा ब्रह्म विलास का तात्पर्य है । क्योकि शास्त्रो मे कृत, कारित अनुमोदना का एक सा फल कहा है ।
प्रश्न १८ - जैसा ब्रह्म विलास पृष्ठ २७८ के २८ वे दोहे में कहा है। ऐसा कहीं क्या और आचार्यों ने भी कहा है ?
उत्तर- 'धरये पचम काला, जिनवर लिग धार सव्वेसि । साढ़े सात करोडम्, जाइये निगोद मज्झमी । ऐसा आचार्यों ने कहा है ।
प्रश्न १६ - 'धरये पंचम काला' यह श्लोक किस शास्त्र का हे ? उत्तर--शास्त्र का नाम हमारे याद नही है, एक भाई ने हमे यह श्लोक बताया था । [ शुद्ध श्रावक धर्म प्रकाश पृष्ठ ३५८ ]
प्रश्न २० - क्या आजकल सच्चे मुनि-क्षुल्लक देखने मे नहीं आते
हैं ?
उत्तर - हाँ, भाई, पचमकाल मे भावलिगी मुनिश्वर - अर्जिका