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( ११८ ) यदि उद्दिष्ट आहार लेने का विकल्प आ जावे, तो वह मुनि ही नही है।
प्रश्न १६-भावलिंगी मुनि को कैसा कैसा भाव नहीं आता और फैसा भाव आ जावे, तो वह मुनि नहीं रहे। जरा खोलकर समझाइये?
उत्तर-(१) भावलिंगी मुनि को अष्ट द्रव्य से पूजन का भाव आ जावे तो मुनिपना नहीं रहेगा । (२) एक मुनि रास्ते मे जा रहे थे। रास्ते मे प्यास से मरते हुए आदमी को देखा। देखकर मुनि ने विचारा "मैं इसको पानी दे देता, तो यह बच जाता, लेकिन भगवान की आज्ञा नही है ।" ऐसा भाव मुनि को आने पर जिनवाणी मे आया है कि वह मुनि नही है । गुलाममार्गी है । क्योकि मुनि स्वय इस प्रकार पानी लेते नही, तब देने का विचार भी भावलिगी मुनि को नहीं आता है । लेकिन श्रावक को पानी देने का भाव न आवे, तो वह श्रावक नही । (३) दो मुनि है, एक ध्यान मे बैठा है । दूसरा आहार के निमित्त जा रहा है । सामने से एक भयकर सिंह ध्यानस्थ मुनि पर हमलावर है । आहार के निमित्त जाने वाले मुनि मे इतनी ताकत है कि उस सिंह को कान पकड कर बैठा दे, तो भी भालिगो मुनि को उसे बचाने का भाव नही आवेगा । यदि बचाने का भाव आ जावे तो मुनिपना नष्ट हो जावेगा और उसी समय वहाँ श्रावक हो उसे मुनि को बचाने का भाव ना आवे, तो श्रावकपना नष्ट हो जावेगा। (४) मुनि के पास पीछीकमण्डल के अलावा और कुछ नही होता है । शास्त्र भी किसी श्रावक ने दिया तो पढकर वही छोड़ देते हैं। मुनि ने किसी को शास्त्र दिया वह शास्त्र मुनि ने पढा भी नहीं है। ऐसे समय मे कोई श्रावक उनसे मांगे, तो भावलिगी मुनि तुरन्त दे देगे। यदि मना करदे या देने का भाव ना आवे, तो मुनिपना नष्ट हो जावेगा। (५) पीछी-कमण्डल के अलावा तिलतुष मात्र भी मुनि परिग्रह नही रखते है । यदि रखे, तो निगोद जाता है।