________________
के कारण पाप बध ही होता है । [ मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ ८] (३) कितने ही पुरुषो ने पुत्रादिक की प्राप्ति के अर्थ अथवा रोग- कष्टादि दूर करने के अर्थ चैत्यालय पूजनादि कार्य किये, स्तोत्रादि किये, नमस्कार मंत्र स्मरण किया । परन्तु ऐसा करने से तो नि काँक्षित गुण का अभाव होता है । निदान वध नामक आर्त्तध्यान होता है । पाप का ही प्रयोजन अन्तरग में है। इसलिए पाप का ही वध होता है । [ मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ २७० ] ( ४ ) वाह्य मे अणुव्रत - महाव्रतादि साधते है । परन्तु अन्तरण परिणाम नही है और स्वर्गादिक की बौछा से साधते है सो इस प्रकार साधने से तो पाप बध होता है इसलिए पात्र जीवो को साँसारिक प्रयोजन का अर्थी होना योग्य नही है । [ मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ २४२] प्रश्न २६ - भाव स्तुति, द्रव्य स्तुति और जड़ स्तुति क्या है ? उत्तर- (१) भावस्तुति = निर्विकल्प दशा है । (२) द्रव्य स्तुति = पुण्य वध का कारण है और जडस्तुति - पुण्य पाप या धर्म का कारण नही है, ज्ञान का ज्ञ ेय है ।
इति निश्चय स्तुति
वहां सब से पहले पूरे प्रयत्न द्वारा सम्यग्दर्शन को भले प्रकार अगीकार करना चाहिये, क्योकि उसके होने पर ही सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र होता ॥२१॥
आचार्य अमृतचन्द्र पुरुषार्थ सिद्ध उपाय