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प्रश्न २३-क्या अपनी आत्मा का अनुभव हुए बिना स्तुति नहीं हो सकती है ? - उत्तर-कभी नही हो सकती है। जैसे-होरे जवाहरात की दुकान पर जिसको हीरे जवाहरात की पहिचान हो और लेना देना जानता हो वही दुकान पर बैठ सकता है, उसी प्रकार जिनको अपनी आत्मा का अनुभव ज्ञान आचरण वर्तता हो, वह ही भगवान की स्तुति कर सकता है । अज्ञानी मिथ्यादृष्टि स्तुति नही कर सकता है।
प्रश्न २४-वर्तमान में जो जीव सांसारिक प्रयोजन के लिए भक्ति-पूजादि करते है । क्या वह कुछ कार्यकारी है ?
उत्तर-(१) भक्ति-पूजादि ससार भ्रमण के लिए कार्यकारी है। आचार्यकल्प प० टोडरमलजी ने मोक्षमार्ग प्रकाशक मे लिखा है कि "जो जीव कपटकरि आजीविका के अथि वा बडाई के अथि वा किछु विषय-कषाय सम्बन्धी प्रयोजन विचारि जैनी होते हैं, वे तो पापी ही है। अति तीव्र कपाय भये ऐसी बुद्धि आवै है। उनका सुलझना भी कठिन है । क्योकि जैनधर्म ससार का नाश के अथि सेइए है । ताकर जो सांसारिक प्रयोजन साध्या चाहै सो बडा अन्याय कर है। तातै ते तो मिथ्यादृष्टि है ही । इसलिए सांसारिक प्रयोजन लिए जो धर्म साधे हैं, ते पानी भी हैं और मिथ्यादृष्टि तो है ही।
[मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ २१६] प्रश्न २५-भक्ति आदि शुभभावो के विषय मे मोक्षमार्ग प्रकाशक मे क्या-क्या बताया है ?
उत्तर-(१) (अ) जो जीव प्रथम से ही सांसारिक प्रयोजन सहित भक्ति करता है । उसके तो पाप का ही अभिप्राय हुआ। [आ] परन्तु भक्ति तो रागरूप है और राग से बँध है। इसलिए मोक्ष का कारण नही है। [३] यथार्थता की अपेक्षा तो ज्ञानी के सच्ची भक्ति है अज्ञानी के नही है [मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ २२२] (२) साँसारिक प्रयोजन के हेतु अरहतार्दिक की भक्ति करने से भी तीन कपाय होने