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पर भी उनसे अलिप्त रहता हुआ, विश्व के ऊपर रहता हुआ रहना यह ज्ञान का स्वभाव है ।
प्रश्न २० - द्रव्येन्द्रिय, भावेन्द्रिय और इद्रियो के विषयभूत पदार्थ, इन तीनो में से प्रथम किसे जीतना चाहिए ?
उत्तर - अन्तरग मे प्रगट अति सूक्ष्म चैतन्य स्वभावी, अखड, असग आत्मा का आश्रय लेते ही तीनो एक साथ जीते जाते हैं । कथन करने मे क्रम पडता है । अरे भाई, एक बार अपने स्वभाव का आश्रय ले, तो सब झगडा निवट जावेगा और अपने भगवान का पता चल जावेगा । अपने आपका अनुभव हुए बिना तीन काल तीन लोक मे 'इनको जीतने' का उपचार भी नही आ सकता है ।
प्रश्न २१ - स्तुति कितने प्रकार की है ?
उत्तर - स्तुति तो एक ही प्रकार की है परन्तु उसका कथन पाँच प्रकार से है । जिस जीव ने अपने शक्ति रूप चैतन्य स्वभाव जो 'शक्तिरूप स्तुति' हैं उसका आश्रय लिया तो एकदेश भावस्तुति जो सवर-निर्जरा रूप है, उसकी प्राप्ति होती है । पूर्ण भाव स्तुति की की प्राप्ति न होने से भूमिका के अनुसार जो अस्थिरता का राग हैं, वह द्रव्यस्तुति है और द्रव्यस्तुति का जडस्तुति के साथ निमित्तनैमित्तिक सम्बन्ध है |
प्रश्न २२ - तीर्थंकर की निश्चयस्तुति में नौ पदार्थ, काल, औपशमिकादिक पाँचभाव, देव गुरु-धर्म हेय उपादेय-ज्ञेय, सुखदायक, दु.खदायक, समयसार, सयोगादि पाँच बोल लगाकर बताओ ताकि स्पष्ट रूप से समझ मे आवे ?
उत्तर- ( १ ) शक्तिरूप स्तुति = जीव तत्व । (२) एकदेश भाव स्तुति-सवर - निर्जरा । (३) द्रव्यस्तुति = आस्रव वध, पुण्य-पाप । (४) जड स्तुति - अजीव । (५) पूर्ण भावस्तुति - मोक्ष । इस प्रकार नौ पदार्थ आ गये। बाकी के बोल इसी प्रकार जबानी बताओ ।